________________ [39] श्रीमदवशेखरसूरिरचित 'सिरिसिरिवालकहा'न्तर्गत- पञ्चपरमेटिनः पञ्चनवकात्मकः संदर्भः च // .. सतिभवेहिं मापहि जेहिं विहियारिहाइठाणेहिं / अजिजह जिणगुत्तं, ते अरिहंते पणिवयामि // 1218 // व्याख्या-शेषः- अवशिष्टानयो भवा येषां ते पुनर्विहितानि - कृतानि सेवितानीति यावत् ईदादिखानानि-विंशतिस्थानकानि यैस्खे तथा तैः, एवं भूतैर्यैर्जिनगोत्रं-जिननामकर्म अय॑ते.... उपार्जीते तान् अर्हतोऽहं प्रणिपतामि नमस्कुर्वे // 1218 // ... .... . . जे एगभवंतरिया रायकुले उत्तमे अवयरंति / महसुमिणसूइअगुणा ते अरिहंते पणिवयामि // 1219 // व्याख्या-ये एकभवान्तरिता उत्तमे राजकुले अवतरन्ति, कीदृशा ये ? महास्वमैश्चतुर्दशभिः सूचिता ज्ञापिता गुणा येषां ते तथा, तानर्हतः प्रणिपतामि-प्रणमामि // 1219 // जेसि जम्मम्मि महिसं दिसाकुमारीओं सुरवरिंदा य / .. कुम्बंति पहिष्मणा ते अरिहंते पणिवयामि // 1220 // . 15 व्याख्या-येषां जन्मनि महिमा महिमानं वा दिकुमार्यः षट्पञ्चाशत् , सुरवरेन्द्राश्च चतुष्षष्टिः प्रहृष्टं प्रकर्षेण हर्षित मनो येषां ते प्रहृष्टमनसः सन्तः कुर्वन्ति, तानर्हतः प्रणिपतामीति पूर्ववत् // 1220 // आजम्मं पि हु जेसि देहे चत्तारि अइसया हुँति / . लोगच्छेत्यभूया ते अरिहंते पणिवयामि // 1221 // . 10 20 अरिहंत ज्यारे त्रण भव बाकी रहे सारे मनुष्यभवमा अरिहंत वगेरे (वीश) स्थानकनुं आराधन करीने जेमणे तीर्थकर नामकर्म उपायुं छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करूं छु // 1218 // छेला भवमा ( माताने आवेलां ) चौद महास्वप्नो वडे सूचित गुणवाळा जेओ उत्तम राजकुळमां अवतरे छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करुं हुं // 1219 // 25 जेओना जन्मसमये अत्यंत हर्षित मनवाळां छप्पन दिक्कुमारीओ अने चोसठ इंद्रो आवीने जन्म-उत्सव करे छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करुं हुं // 1220 //