SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / मुणिसंखा पंचगुणा ख(प)णवाई तह य पवण-गयणंता। एदे य धवलवण्णा कायव्वा झाणमग्गेण // 23 // 6 // णिसिऊण पंचवण्णा पंचसु कमलेसु पंचठाणेसु / झाएह जहकमेणं पयत्थझाणं इमं भणियं // 24 // 7 // सत्तक्खरं च मंतं सत्तसु ठाणेसु णिससु सियवण्णं / सिद्धसरूपं च सिरे एयं च पयत्थझाणु त्ति // 25 // 8 // अट्ठदलकमलमज्झे अरुहं वेढेह परमवीयेहिं / पत्तेसु तह य वण्णा दलंतरे सत्तवण्णा य // 26 // 9 // गणहरवलयेण पुणो मायावीएण धरयलकंतं / जं जं इच्छह कम्मं सिज्झइ तं तं खणखूण // 27 // 10 // . 10 घणघाइकम्ममहणो अइसयवरपाडिहेरसंयुत्तो। झाएह धवलवण्णो अरहंतो समवसरणत्थो // 28 // 11 // 745 = 35 वर्णोनी आदिमां प्रणव एटले 'ॐ' कारने मूकवो अने पवन एटले 'स्वा' .. अने गगन एटले 'हा' ने अंते मूकवा (अर्थात-ॐ नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं स्वाहा)। ए बधा वर्णोने ध्यानमां मम 15 रहेला साधके धवल वर्णना चिन्तववा // 23 // (6) __पांच स्थानमां (नाभि, मस्तक, वदन, कंठ अने हृदयमा) रहेल पांच कमलमां अनुक्रमे पांच वर्णो (असि-आ-उ-सा अथवा नमो सिद्धाणं)ने स्थापीने ध्यान करो। एवा ध्यानने पदस्थध्यान कहेल छ॥२४॥(७) __श्वेतवर्णवाळा सात अक्षरना मंत्रने सात स्थानो (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा अने सहस्रार चक्रो )मां स्थापन करो अने सिद्धना स्वरूपने शिर एटले ब्रह्मरंध्रमां 20 स्थापन करो। आने पदस्थध्यान कहेल छे // 25 // (8) ____ आठ पत्रवाळा कमळनी मध्य ( कर्णिका )मां परम बीजो (ॐ ह्रीं अहँ )थी अरिहंतने वेष्टित करो तेमज ए कमळना पत्रोमा क्रमशः आठ वर्णो (वर्गना प्रथमाक्षर-अ-क-च-ट-त-प-य-श) भने बे दलोनी संधिमां 'नमो 'अरिहंताणं' ए सात वर्णो स्थापित करवा / पछी ते कमळने गणधरवलय (श्रीसिद्धचक्र बृहद् यंत्रमां बतावेल 48 लब्धिपदो)थी वेष्टित करवू / आ रीते बनेला 25 समग्र यंत्रने (उपर) मायाबीज (8) (अने नीचे थी साडात्रण आंटा) वडे वेधित करवो। आवा प्रकारतुं ध्यान करनार जे जे इच्छे, ते ते क्षणार्द्धमां सिद्ध थाय छे // 26-27 // (9-10) घनघाति कर्मोना नाशक, श्रेष्ठ प्रातिहार्यादि अतिशयोथी युक्त, समवसरणमां विराजमान अने श्वेतवर्णवाळा एवा श्रीअरिहंत परमात्मानुं ध्यान करो // 28 // (11) परिचय-दिगंबराचार्य श्री पद्मसिंहमुनिए 'ज्ञानसार' नामर्नु प्रकरण 63 गाथात्मक प्राकृतमां 30 रच्यु छ / तेमांथी नमस्कार संबंधी संदर्भ लईने अहीं अनुवाद साथे प्रकट कर्यु छ / ___आ प्रकरण श्रीमाणिक्यचंद्र जैन दिगंबर ग्रंथमाला पुस्तक 13 मा प्रकट थयु छ / ए प्रकरणने अंते कर्ताए तेनो रचनासमय नीचेनी गाथामां नोंध्यो छ सिरिविक्रमस्स काले दशसयछासी जुयम्मि वहमाणे / सावण सियणवमीए अंबयणयरम्म कयमेयम् / -वि. सं. 1086 ना श्रावण सुदि 9 ना दिवसे अंषयनगरमां आ रच्यु।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy