________________ [36] सिरिपउमसीहमुणिविरइय ‘णाणसार संदभो॥ झाएह तिप्पयारं अरुहं कम्भिधणाण णिद्दहणं / पिंडत्थं च पयत्थं स्वत्थं गुरुपसाएण // 18 // 1 // णियणाहिकमलमज्झे परिट्ठियं विप्फुरंतरवितेयं / झाएह अरुहरूवं झाणं तं मुणह पिंडत्थं // 19 // 2 // झायह णियसिरमझे भालयले हिययकंठदेसम्मि / जिणरूवं रवितेयं पिंडत्थं मुणह झाणमिणं // 20 // 3 // अट्ठमवग्गचउत्थं सत्तमवग्गस्स वीयवण्णेण / अकंतमुवरि सुण्णसुसंयुयं मुणह तं तच्चं // 21 // 4 // एयं च पंच सत्त य पणतीसा जहकमेण सियवण्णा / झायह पयत्थझाणं उवइटुं जोयजुत्तेहिं // 22 // 5 // अनुवाद श्रीसद्गुरुनी कृपाथी कर्मरूपी इन्धनने बाळी नाखवा माटे दावानळ समान, पिंडस्थ, पदस्थ 15अने रूपस्थ एम त्रण प्रकारे श्रीअरिहंत परमात्मानुं ध्यान करो // 18 // (1) पोताना नाभिकमल (मणिपूरचक्र) नी मध्यमां स्थापन करेला अने सूर्यसमान स्फुरायमान तेजवाळा श्री अरिहंत भगवंतना खरूपर्नु ध्यान करो / एवा ध्यानने तमे पिंडस्थध्यान जाणो // 19 // (2) वळी शिरे (सहस्रारमां), भालतले (आज्ञाचक्रमां), हृदय (अनाहतचक्र)मां तेम ज कंठदेश (विशुद्धचक्र) मां सूर्यसमान तेजवाळा श्रीअरिहंत भगवंतना खरूपनुं ध्यान करो। एवा ध्यानने तमे 20 पिंडस्थध्यान जाणो // 20 // (3) सातमा वर्गना बीजा वर्ण 'र' थी (उपर नीचे) आक्रान्त अने शून्य एटले बिन्दुथी युक्त एवो आठमा वर्गनो चोथो वर्ण जे 'ह' (अर्थात् 'ई') ते तत्त्व छे // 21 // (4) योगी पुरुषोए कहेलु क्रमशः पांच (नमो सिद्धाणं), सात (नमो अरिहंताणं) अने पांत्रीश (नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं,) श्वेत रंगवाळा 25 वर्णोनुं पदस्थ ध्यान करो // 22 // (5)