________________ [ 37] सिरिरयणसेहरसूरिविरइय- 'सिरिसिरिवालकहा'तो ____ सिद्धचक्कयंतोद्धारविहिसंदब्भो श्रीक्षमाकल्याणगणिकृतव्याख्यासमेतः॥ अरिहं सिद्धायरिया उवज्झाया साहूणो य सम्मत्तं / नाणं चरणं च तवे इअ पयनवगं परमतत्तं // 191 // 1 // व्याख्या-नवपदनामान्याह-अर्हन्तः 1, सिद्धाः 2, आचार्याः 3, उपाध्यायाः 4, साधवः 5, च-पुनः सम्यक्त्वं 6, ज्ञानं 7, चरणं-चरित्रं 8, च-पुनः तपः 9; इत्येतत् पदानां नवकं परमतत्त्वं वर्तते // 191 // (1) एएहिं नवपएहिं रहिअं अन्नं न अत्थि परमत्थं / एएसु चिय जिणसासणस्स सव्वस्स अवयारो // 192 // 2 // व्याख्या-एतैः नवभिः पदै रहितो-वर्जितोऽन्यः परमार्थस्तात्त्विकोऽर्थो नास्ति, एतेष्वेवनवपदेषु सर्वस्य जिनशासनस्य-जिनमतस्य अवतारः-अवतरणमस्ति // 192 // (2) जे किर सिद्धा सिझंति जे अ जे आवि सिज्झइस्संति / - ते सव्वे वि हु नवपयझाणेणं चेव निभंतं // 193 // 3 // 15 व्याख्या-किलेति-निश्चितं ये जीवा अतीते काले सिद्धाः मुक्तिं गताः, ये च वर्तमानकाले : सिद्धयन्ति, ये चापि अनागते काले सेत्स्यन्ति-सिद्धिं यास्यन्ति, हुः पादपूरणे ते च सर्वेऽपि निर्धान्तं निस्सन्देहं नवपदध्यानेनैव, न तु तव्यतिरेकेणेत्यर्थः // 193 // (3) * एएसिं च पयाणं परमेगयरं च परमभत्तीए / ...., आराहिऊण णेगे संपत्ता तिजयसामित्तं // 194 // 4 // व्याख्या-च-पुनः एतेषां पदानां मध्याद् एकतरं अन्यतममेकं पदं परमभक्त्या अराध्य संसेव्य अनेके जीवाः त्रिजगत्स्वामित्वं सम्प्राप्ताः सकलकर्मक्षयेण त्रिभुवनस्वामिनो जाता इत्यर्थः // 194 // (4) अनुवाद अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यक्त्व ( दर्शन ), ज्ञान, चारित्र अने 25 तप ए नवपदो परमतत्त्व एटले ध्येयरूप छे // 191 // (1) आ नवपदोथी रहित एवं अन्य ते परमार्थ नथी / ( तात्पर्य के जे आ नवपदोथी सहित होय ते ज परमार्थ छे ) / ए (नवपदो)मां ज समग्र जिनमतनुं अवतरण छे // 192 // (2) खरेखर, जेओ सिद्ध थया छे, जेओं सिद्ध थाय छे अने जेओ सिद्ध थशे-ते बधाये निश्चयपूर्वक आ नवपदना ध्यान वडे ज (सिद्ध थया छे, थाय छे अने थशे) एमां संदेह नथी॥१९३॥ (3) 30 आ नवपदोमांथी एकाद पदनीये परमभक्तिथी आराधना करतां (कर्मक्षय थवाथी) अनेक मनुष्योए त्रणे जगतनुं स्वामीपणुं प्राप्त करेलुं छे / / 194 // (4) 30