________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 459 सम्मत्तनिचलत्तं परमं नरनाह ! नवरि कायव्यं / उच्छुलय व न किरिया, एयविउत्ता फलं देइ // 133 // अन्नं च 'पंच-मंगल-सुयखंधो' एस गिजए समए / पढमुच्चारो सत्थाण, दिव्यमंताण पणवो व्व // 134 // एसो य उद्दिसिज्जइ जिणभवणे नंदिवियरणापुव्वं / तो कीरंतुववासा पढमं चिय पंच एगसरा // 135 // तो अट्ठ अंबिलाई दिजइ नवकारवायणा तत्तो / तिहिं उववासेहिं ततोऽणुनवणा कीरइ इमस्स // 136 // इह साहुपए नव अक्खराइं पंचेव हुंति सिद्धपए / अरिहंताइपएमुं, पत्तेयं सत्त सेसेसुं // 137 // अरिहंताई पंच वि, पयाई बीयाई परममंताणं / एयाणुवरिं चूला, 'एसो पंच'ति एमाई // 138 // तेत्तीसक्खरमाणा, इमा य तेत्तीसपयडणपहाणा (?) / एवं [ एस] समप्पइ, फुडमक्खरअट्ठसठ्ठीए // 139 // 10 हे राजन् ! तो पण सम्यक्त्वमा निश्चलपणुं उत्तम रीते धारण कर, जोईए। शुद्ध समकित 15 विनानी क्रिया शेरडीनी लतानी माफक फळ आपती नथी // 133 // . वळी, दिव्य मंत्रोमां प्रणवनी जेम जिनमत शास्त्रोना प्रथम उच्चार तरीके 'पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध' ग्रहण कराय छे // 134 // - श्रीजिनमंदिरमां नंदिनी रचना करीने, पंचपरमेष्ठी नमस्कारनी उद्देशविधि करी शकाय छ / ते माटे वाचना लेनारे प्रथम एकीसाथे पांच उपवास करवाना होय छे / त्यार पछी आठ आयंबिल 20 करवानां होय छे / आटलं तप कर्या पछी नवकारनी वाचना आपी शकाय छे। ते पछी त्रण उपवासे नवकारनी अनुज्ञा कराय छे // 135-136 // आ मंत्रमा साधुपदमां नव अक्षरो छे अने सिद्धपदमां पांच ज अक्षरो छे। बाकीनां 'अरिहंत' वगेरे पदोमां सात सात अक्षरो छे। जे कोई उत्तम मंत्रो छे ते बधाना बीजरूप आ 'अरिहंत' वगेरे पांचे पदो छ / ते पांच पदो उपर 'एसो पंचनमुक्कारो' वगेरे चूलिका 25 छे // 137-138 // - अने आ चूलिका तेत्रीश अक्षर प्रमाण छे / ए प्रमाणे (उपरनां पांचे पदोना पांत्रीश अक्षरो साथे) आ पंचपरमेष्ठी नमस्कार-मंत्र अडसठ अक्षरो वडे विधिपूर्वक संपूर्ण अपाय छे // 139 //