________________ 460 [प्राकृत सिरिदेवभद्दसूरिरइय 'कहारयणकोस'संदब्भो एवं पढिओ एसो, विहीए लक्खेण सेय-सुरहीणं / कुसुमाणं पुण जविओ, भव्वेण तदेगचित्तेणं // 14 // वियरइ भुवणभरहियं, तित्थंकर-चकि-गणहरपयं पि / जह तह सुलभाणं, पुण का वत्ता सेसवत्थूण 1 // 141 // अंतोऽरिहंतविन्नास दाहिणावत्त-सिद्धमाईणं / ज्झाणं व एत्थ किचं, निचं परमेट्ठिमुद्दाए // 142 // करआवत्ते जो पंचमंगलं साहुपडिमसंखाए / नव वारा आवत्तइ, छलंति नो तं पिसायाई // 143 // एयप्पभावमहवा, सव्वं सव्वन्नुणो चिय मुणंति / तल्लेसुद्देसं पुण, पत्थिव! तुह किं पि उवइ8 // 144 // (कहारयणकोसो-सामन्नगुणाहिगारो-कथानक 10 मुं. पृ. 62 (3) अह केवलिणा सिट्ठो, सिरिदेवनराहिवस्स माहिंदै / सुरसिरिलाभो सुजवियपंच-नमोक्कारमाहप्पा // 231 // तत्तो सुकुलुप्पत्ती, कड्वयभवभमणओ य सिवलाभो / इय 'पंचनमोकारो,' सारो नीसेसधम्मस्स // 232 // 15 आ प्रमाणे आ नमस्कार-मंत्रने विधिपूर्वक भणीने जे भव्यात्मा लाख श्वेत अने सुगंधी पुष्पो चढाववापूर्वक एकाग्र-चित्तथी जपे छे तेने ते नमस्कार-मंत्र त्रण भुवनमां गौरवशाली एवा तीर्थंकरपद, गणधरपद के चक्रवर्तिपदने पण आपे छे। तो पछी जे अल्प प्रयत्ने सुलभ एवी बीजी वस्तुओनी 20 शी कथा ? // 140-141 // ___ वच्चे अरिहंत-पदने स्थापq अने दक्षिणावर्तना क्रमथी सिद्ध वगेरेना पदोने गोठववां। आ रीते परमेष्ठी मुद्रा करीने ए नवकार-मंत्र- नित्य ध्यान करवू जोईए // 142 // वळी, जे मनुष्य अंगुलिओना आवर्तवडे बार बार नवकार नव वखत गणे छे तेने पिशाच वगेरे छळी शकता नथी // 143 // . 28 . आ नमस्कार-मंत्रना पूरेपूरा प्रभावने तो सर्वज्ञ भगवान ज जाणे छे / हे राजन् ! में तो तने तेनो कांईक लेशमात्र प्रभाव ज कही बताव्यो छे // 144 // (3) ते पछी केवलीए कह्यु के–सारी रीते जपेला पंच-नमस्कार-मंत्रना माहात्म्यथी श्रीदेव राजाने माहेन्द्र नामना स्वर्गमां देवताई ऋद्धिनी प्राप्ति थई छे // 231 // 30 त्यांथी च्यव्या पछी ते कोई सारा कुळमां जन्म लेशे अने पछी केटलाक (थोडाक.) भवोमां फरीने तेने निर्वाणनो लाभ थशे, ए प्रमाणे पंच नमस्कार-मंत्र समग्र धर्मनो सार छे // 232 //