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________________ 458 सिरिदेवभहसूरिरइय'कहारयणकोस'संदब्भो। [प्राकृत तहा हि नाभिद्दवइ दवो तं, दूमइ न मयाहिवो सुकुद्धो वि। सप्पो वि नाभिसप्पइ, न वि चंपइ मत्तपीलू वि // 6 // सत्तू वि तं न बाहइ, न विराहइ भूय-साइणिगणो वि / चोरेइ तकरो न वि, न कमइ तं वारिपूरो वि // 7 // अहवा किमित्तिएणं ? इहपरलोए स वंछियं लहइ / जस्स मणे नवकारो, 'सिरिदेवो' एत्थुदाहरणं // 8 // [कहारयणकोसो-सामन्नगुणाहिगारो, पृष्ठ-५५] ता तझुग्गयमुवलब्भ, साहुणा चंदणं व मलयाओ। नंदणवणाउ कप्पडुमं, व जलहीउ अमयं व // 131 // पारगयपणीयाओ, पावयणाओ पहाणओ परमो / 'पंचपरमेट्ठिमंतो', उवइट्ठो इट्टसिद्धिकरो // 132 // . जेमके (जे पुरुष आदरपूर्वक अने विनय-सहित पंच-परमेष्ठीओने नमस्कार करे छे तेने) दावानल स्पर्शी शकतो नथी, क्रोधे भरायेलो सिंह पण तेने ईजा करी शकतो नथी, सर्प पण तेनी पासे आवी शकतो नथी, मदोन्मत्त हाथी पण तेने हानि करी शकतो नथी, शत्रु पण तेने पीडा करी शकतो नथी, भूत अने शाकिनीओनो समुदाय पण तेने डरावी शकतो नथी, चोर तेने लूंटी शकतो नथी अने पाणीन पूर पण तेने ओळंगी शक्तुं नथी // 6-7 // 20 अथवा आटलाथी ज शुं ? जेना मनमां नमस्कार छे, ते आ लोक अने परलोकमां पोतानु वांछित पामे छे / श्रीदेव राजा अहीं दृष्टांत छे // 8 // * (2) त्यार पछी ए मुनिराजे ते(राजा)नी योग्यता जाणीने मलयपर्वत उपरथी चंदन, नंदनवनमाथी कल्पवृक्ष अने समुद्रमांथी अमृतनी जेम श्रीतीर्थंकर भगवंते प्ररूपेला उत्तम प्रवचनमाथी इष्टसिद्धि करनार 25 परम पंचपरमेष्टिनमस्कार-मंत्रने उपदेश्यो // 131-132 // ** दृष्टांत माटे जुओ-'कथारनकोष', कथानक 10 मुं.
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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