________________ 456 [प्राकृत सिरिसिड्ढरिसिरहय 'चंदकेवलिचरिय' संदब्भो। पादयोः पादरक्षां चामीभिः पञ्चपदैः क्रमात् / आत्मरक्षा विधातव्या, चतुथूलापदैस्तथा // 49 // शिला वज्रमयी भूमी, वो वज्रमयो बहिः।। खातिकाङ्गारसंपूर्णा, वप्रोवं वज्रमण्डपः // 50 // कर्तव्या बाह्यरक्षेयं, दिन प्रति निरन्तरम् / सङ्गामे सङ्कटे मार्गे, रक्षां कुर्या विशेषतः // 51 // एतन्मन्त्राधिराजस्य, प्रभावाद् यान्ति दूरतः। चौरारि-व्याल-चेतालादिभयान्यखिलान्यपि // 52 // नित्यमस्माच जायन्ते, संपदो हि पदे पदे। तदेतद्ध्यानतो भद्रं, वर्ततां तव वर्मनि // 53 // [श्रीसिद्धर्षिरचित-श्रीचन्द्रकेवलिचरितस्य द्वितीयाधिकारे संदर्भः / ] [प्रकाशक : जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर, वि. सं. 1993] 10 हथियार छे अने ('नमो लोए सव्वसाहूणं' ए पदथी) पगमां रक्षा माटेनी मोजडीओ छे; एम धारीने क्रमशः आ पांचे पदोथी आत्मरक्षा करवी। अने ए ज प्रकारे चार चूलिकापदोथी-एटले ('एसो 15 पंचनमुक्कारो' ए पदथी) भूमितल उपर वज्रमयी शिला छे, ('सव्वपावप्पणासणो' ए पदथी) बहार वज्रमय किल्लो छे, ('मंगलाणं च सव्वेसिं' ए पदथी) अंगाराथी भरेली खाई छे अने ('पढमं हवइ मंगलं' ए पदथी) किल्ला उपर ऊंचो वज्रनो मंडप छे एम धारीने प्रतिदिन निरंतर आ प्रकारे 'बाह्यरक्षा' करवी। अने युद्धमां, संकट वखते, मार्गमा विशेष करीने रक्षा करवी। (48 थी 51) * आ मन्त्राधिराजना प्रभावथी चोर, शत्रु, सर्प, वेताल वगेरेयी थता सर्व भयो दूरथी ज चाल्या 20 जाय छे। (52) आ मंत्रथी हमेशां पगले पगले संपत्तिओ प्राप्त थाय छे; तेथी नमस्कारना आवा प्रकारना ध्यानथी प्रयाणमार्गमां तमारु कल्याण थाओ। (53) परिचय 'उपमितिभवप्रपंचाकथा' नामना विशाळकाय कथाग्रंथनी रचना करनार अने एवा बीजा 25 अनेक ग्रंथोना कर्ता तरीके प्रसिद्धि पामेला श्रीसिद्धर्षिगणिए 'चंद्रकेवलिचरित' नामे ग्रंथनी रचना वि. सं. 974 मां करी छे। तेमांथी नमस्कारविषयक बे संदर्भो, जेमा प्रथम संदर्भ प्राकृतमां अने बीजो संदर्भ संस्कृतमा छे, ते तारवीने अहीं अनुवाद साथे प्रगट कर्या छ / आ ए ज सिद्धर्षिगणि छे के जेओ बौद्धो पासे तेमना सिद्धांतो भणवा गयेला त्यारे श्री हरिभद्रसूरिए रचेली 'ललितविस्तरावृत्ति'थी प्रतिबोध पामीने बौद्ध बनतां बची गयेला। श्रीहरिभद्रसूरिए 30 करेला आ उपकारनो तेमणे पोताना ग्रंथमां तेमने 'धर्मबोधकर' कही मानभेर उल्लेख कर्यो छ। * सरखावो-संस्कृत विभागमा 'आत्मरक्षानमस्कारस्तोत्र'।