________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 455 नवकारइक्कअक्खर, पावं फेडेइ सत्तअयराणं / पन्नासं च पएणं, पणसय सागर समग्गेणं // 66 // जे के वि गया मुक्खं, गच्छंति य केइ कम्ममलमुक्का / ते सव्वे वि य जाणसु, जिणनवकारप्पहावेणं // 67 // जिणसासणस्स सारो, चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो / जस्स मणे नवकारो, संसारो तस्स किं कुणइ ? // 68 // परमेटिनमुक्कारो, पणतीसक्खरजुओ सया पवरो / एसो य महामंतो, तुट्ठो चिंतियफलं देई // 69 // [श्रीचन्द्रकेवलिचरित्रे द्वितीयोऽधिकारः, पृष्ठ 24 ] - [प्रकाशक: जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर वि. सं. 1993] (2) तथापि प्राणनाथ ! प्राक्, श्रुतं श्रीगुरुवक्त्रतः / नवकारमहामन्त्रमाहात्म्यमवधार्यताम् / / 47 // शीर्षे कुर्याः शिरस्कं च, मुखे मुखपटं तथा / काये च कवचं वज्रमायुधं हस्तयोदृढम् / / 48 // 10 नमस्कारनो एक अक्षर सात सागरोपमनां पापने दूर करे छे, एक पदथी पचास सागरोपमनुं पाप अने समग्र (संपूर्ण) नवकारवडे पांचसो सागरोपमनुं पाप दूर थाय छे // 66 // . (आज सुधी) जे कोई मोक्षमां गया छे, अने आजे पण कर्ममलथी रहित थईने जे कोई मोक्षमां जाय छे, (तथा भविष्यमां जे कोई पण मोक्षमा जशे,) ते सर्वे आ जिन-नमस्कारना प्रभावथी ज, एम जाणवू // 67 // 20 जिन-शासननो सार अने चौद पूर्वनो समुद्धार एवो नमस्कार जेना मनमां रमे छे, तेने संसार शुं करी शके ? // 68 // पांत्रीश अक्षरोथी युक्त आ पंच-परमेष्ठी नमस्कार सदा उत्कृष्ट महामंत्र छे अने (आराधना वडे) तुष्ट थयेलो आ नमस्कार इच्छित फळने आपे छे // 69 // 25 ....तथापि हे प्राणनाथ ! पूर्वे श्रीगुरु महाराजना मुखथी सांभळेल नमस्कार-महामंत्रना महिमा तमे अवधारण करो। (47) . ('नमो अरिहंताणं' ए पदथी) मस्तक उपर शिरस्त्राण एटले लोढानो टोप छे, (' नमो सिद्धाणं' ए पदथी) मुख पर मुखपट एटले बुकानी छे, ('नमो ‘आयरियाणं' ए पदथी) शरीर पर कवच एटले बख्तर पहेरेलुं छे, ('नमो उवज्झायाणं' ए पदथी) बंने हाथोमां वज्र जेवू मजबूत 30