________________ 454 सिरिसिरिसिरइय 'चंदकेवलिचरिय' संदभो। [प्राकृत जो गुणइ तत्थ लक्खं, पूएइ विहीइ जिणनमुक्कारं / तित्थयर-नामगुत्तं, सो बंधइ नत्थि संदेहो // 58 // ' अद्वेवय अट्ठसया, अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडीओ। जो गुणइ भत्तिजुत्तो, सो तइयभवे लहइ सिद्धिं // 59 // करआवत्तिहिं जो, पंचमंगलं साहुपडिम (12) संखाए / नववारा आवत्तइ, छलंति तं नो पिसायाई // 60 // न य तस्स किंचि पहवइ, डाइणि-वेयाल-रक्ख-मारिभयं / नवकारपहावेण य, नासंति असेसदुरियाई // 61 // थंभेइ जलं जलणं, चिंतियमित्तो वि पंचनमुकारो। 10 अरि-मारि-चोर-राउल-घोरुवसग्गं पणासेइ // 62 // अडवि-गिरि-जलहिमज्झे, भयं पणासेइ चिंतिओ एसो। रक्खइ भवियसयाई, माया जह पुत्त भंडाई (डिंभाइं)॥ 63 // आहि-जर-वाहि-तक्कर-हरि-करि-संगाम-विसहरभयाई / नासंति तक्खणेणं, जिणनवकारप्पहावेणं / / 64 // 15 हियय गुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निचं / कम्मट्ठगंठि दोघट्टघट्टयं ताण परिणटुं // 65 // तेमां जे (भविक) आ जिन-नमस्कार-मंत्रनों तीर्थमां लाख वार जाप करे .छे अने विधिसर पूजन करे छे, ते तीर्थंकर नाम-गोत्रकर्मने बांधे छे तेमां संदेह नथी॥ 58 // आठ, आठसो, आठ हजार के आठ करोडवार जे भक्तिपूर्वक (नमस्कार-मंत्र) गणे छे, ते त्रीजा 20 भवमां सिद्धिने प्राप्त करे छे // 59 // करावर्त (शंखावर्तादि) वडे बार संख्याथी नव वार जे पंच-मंगल-नमस्कारनो जाप करे छे, तेने पिशाच वगेरे बाधा पहोंचाडता नथी॥६०॥ अने डाकिनी, वेताल, राक्षस के मरकी वगेरेना भयो तेने कंइ पण करी शकता नथी, तथा आ नमस्कार-मंत्रना प्रभावथी सघळां पापो (अशुभ कर्मो) नाश पामे छे // 61 // आ पंच-नमस्कार चिंतनमात्रथी ज जल अने अग्निने थंभावे छे, तथा शत्रु, महामारी, चोर अने राजकुलवडे थता घोर उपद्रवनो नाश करे छे // 62 // जंगलमां, पर्वत उपर के समुद्रनी मध्यमां आवेला भयनो आ नमस्कार स्मरणमात्रथी नाश करे छे अने जेम माता पोतानां नानां बाळकोनुं रक्षण करे छे, तेम नवकार सेंकडो भविकोनुं रक्षण करे छे // 63 // 30 आ जिन-नमस्कारना प्रभावथी आधि-मानसिक चिंता, ज्वर, अन्य व्याधि, चोर, सिंह, हाथी संग्राम, सर्प आदिना भयो तत्काल नाश पामे छे // 64 // . जेमनी हृदयरूपी गुफामां नमस्काररूपी केसरी सिंह निरंतर वसे छे, तेमना आठ कर्मनी ग्रंथिओरूप हाथीओनो समूह नासी जाय छे // 65 // 1 सरखावो-पंचनमुक्कार फल' गाथाः 12.