________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। आवईहि पि पढिजइ, जेण य लंघेइ आवइसयाई / रिद्धीई पि पढिजइ, जेण य सा होइ वित्थिण्णा // 51 // ' जह अहिणा दट्ठाणं, गारुडमंतो विसं पणासेइ / तह नवकारो मंतो, पावविसं नासइ असेसं // 52 // कि एस कामकुंभो, किंवा चिंतामणीहुय नवकारो। किं कप्पतरू एसो, न हु न हु ताणंपि अहिययरो // 53 // कामघडो देवमणी, सुररुक्खो एगजम्मसुहहेऊ।। नवकारो पुण पवरो, सग्गपवग्गाण दायारो // 54 // " सत्तरि कोडाकोडीसायरमाणे इमम्मि मोहणीये / कोडाकोडी सेसे, नवकारो * मुहजिओ होइ // 55 // जं किंपि परमतत्तं, परमप्पयकारणं च जं किंचि / तत्थ इमो नवकारो, झाइजइ परमजोगीहिं // 56 // पंवन-हरिया-रिहा (ॐ ह्री अर्ह) इइ, मंतहबीयाणि सप्पहावाणि / सव्वेसि तेसिं मूलं, इक्को नवकारवरमंतो // 57 // 10 आपत्तिओमां पण भणाय तो सेंकडो आपत्तिओथी पार ऊतारे छ। संपत्तिमां भणाय तो 15 संपत्तिओनो विस्तार थाय छे / / 51 // जेम सर्पवडे करडायेलाना विषनो गारुडमंत्र नाश करे छे तेम नवकार-मंत्र समग्र पापरूपी विषनो नाश करे छे // 52 // __ शु आ (नमस्कार) कामकुंभ छे ? अथवा चिंतामणि छे ? अथवा तो आ कल्पतरु छे? नहि, नहि, तेनाथी पण अधिक फळ आपनारो छे // 53 // 20 केमके कामघट, चिंतामणि के कल्पवृक्ष तो एक जन्म माटे ज सुखना कारणभूत छे, पण अत्युत्तम नमस्कार तो स्वर्ग अने मोक्षने आपनारो छे / / 54 // ___ सित्तेर कोडाकोडी सागरोपम मोहनीयकर्ममांथी एक कोडाकोडी सागरोपम कर्म बाकी रहे त्यारे जीव आ नमस्कारने उन्मुख बने छे (नवकारने पामे छे) // 55 // ___ जे कंइपण परमतत्त्व छे, जे कंइ पण परमपदनुं कारण छे, ते सर्वनी आदिमां आ नमस्कार-25 उत्कृष्ट योगीओ वडे ध्यान कराय छे // 56 // प्रवण ॐ, ह्रीकार ही तथा अर्हद्बीज अहँ वगेरे जे प्रभावशाळी बीजमंत्रो छे ते सर्वेनु मूळ एक श्रेष्ठ नवकार-मंत्र छे // 57 // 1 सरखावो–'पंचनमुक्कार फल' गाथाः 5,6. 2 सरखावो-'पंचनमुक्कार फल' गाथाः 8. 3 सरखावो-'पंच. नमुक्कार फल' गाथाः 9. 4 सरखावो-'पंचनमुक्कार फल' गाथाः 10. * 'नवकार म्मुहजि(जी)ओ होई' प्रत्यन्तरे / 30