________________ ... [34] सिरिसिडरिसिरइय 'चंदकेवलिचरिय' संदभो // ससिधवला अरिहंता, सिद्धा वरपम्मरागसंकासा / कणगाभा आयरिआ, उवज्झाया पुण पियंगुनिहा // 45 // अंजणमणिप्पहा तह, लोए सव्वे वि साहुणो विविहा / इय परमेट्ठिपयाई, पंच वि झाइजइ विहिणा // 46 // एयाण नमुक्कारो, पंचण्डं होइ मंगलं पढमं / उडमहोतिरियम्मि वि, एसु चिय सासओ मंतो // 47 // एरवएहिं पंचहि, पंचहि भरहेहिं संपढिाई अ।। अईयअणागयकाले, एसो चिय जिणनमुक्कारो // 48 // सट्ठिसयं विजयाणं, पवराणं जत्थणाइजिणधम्मो / सासयकालो वट्टइ, तत्थ विमो (विसो) चेव नवकारो // 49 // ' जम्मि वासरे पढिजइ, जेणिह जीयस्स होइ फलरिद्धी। अवसाणे वि पढिजइ, जेण मओ सग्गई जाइ // 50 // अनुवाद (श्रीचंद्रकुमारे मुनि पासेथी सम्यक्त्व स्वीकार्यु ते वखते मुनिए नवकार विषे जणाव्यु के हे राजन् !-) 20 अरिहंतो चंद्रमा जेवा श्वेतवर्णवाळा छे, सिद्धो श्रेष्ठ पद्मराग जेवा रक्तवर्णवाळा छे, आचार्यो सुवर्ण जेवा (पीळा) वर्णवाळा छे। वळी, उपाध्यायो प्रियंगु जेवा (नील) वर्णवाळा छे अने सर्व विविध साधुओ पण अंजनमणि जेवा श्याम वर्णवाळा छे। आ पांचेय परमेष्ठिपदोनुं विधिपूर्वक ध्यान करवू जोईए // 45-46 // . ए पंच-परमेटीने करेलो नमस्कार प्रथम मंगल छे अने ऊर्ध्वलोक, अधोलोक तथा तिर्यग्लोकमा 25 पण आ ज शाश्वत मंत्र छे // 47 // पांच भरत अने पांच ऐरावतमां भूत अने भविष्यकाळमां पण आ जिन-नमस्कारनुं ज सम्यक् पठन कराय छे // 48 // प्रवर एवा एकसो ने साठ विजयो के ज्यां जिन धर्म अनादि काळथी शाश्वतरूपे प्रवर्ते छे, त्यां पण आ ज नमस्कार छे // 19 // 30. जन्मदिवसे आ नमस्कार-मंत्र भणाय तो जीवने (आ जन्ममां) समृद्धि प्राप्त थाय छे अने मरण समये भणाय तो मृत जीव सद्गतिमां जाय छे // 50 // 1 सरखावो-'पंचनमुक्कार फल' गाथाः 14. 2 सरखावो–'पंचनमुक्कार फल' गाथाः 5,6.