________________ [33] प्रवचनसारोद्धार-तट्टीका-संदर्भः॥ मूलकर्ता-श्रीनेमिचन्द्रसूरिः - टीकाकर्ता-श्रीसिद्धसेनसूरिः // पंचपरमेट्ठिमंते पए पए सत्त संपया कमसो / पजंतसत्त[दह]क्खरपरिमाणा अट्ठमी भणिया // 79 // टीका-तत्र 'पंचपरमेष्ठी त्यादि, पञ्चपरमेष्ठिमन्त्रे पदे पदे-विवक्षिताभिधेययुक्ते 'नमो अरहंताणं' इत्यादिके, न पुनः सुप्तिड्युक्ते, सप्त संपदः क्रमशो विज्ञेयाः, अष्टमी पुनः पर्यन्ते सप्तदशाक्षरप्रमाणा 'मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवह मंगलं' इति स्वरूपा भणिता गणधरादिभिः, अन्ये तु पर्यन्तवर्तिनीस्तिस्रः सम्पद एवं मन्यन्ते, यथा--'एसो पंच नमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो' इति 10 षोडशाक्षरप्रमाणा षष्ठी सम्पत् , 'मंगलाणं च सवर्सि' इत्यष्टाक्षरघटिता सप्तमी संपत्, “पढमं हवइ . मंगलं' इति नवाक्षरनिष्पन्ना अष्टमी सम्पत् , यदुक्तम् अंतिमचूलाइतियं सोलसअट्ठनवक्खरजुयं चेव / जो पढइ भत्तिजुत्तो सो पावइ सासयं ठाणं / / इति, एवमैर्यापथिक्यादिष्वपि सम्पद्विषये यथायथं मतान्तराणि मतिमद्भिर्मन्तव्यानीति / 15 अत्र च यद्यपि 'हवइ-होइ' इत्यनयोरर्थं प्रति न कश्चिद् विशेषः। 'होइ मंगलं' इति च पाठे श्लोको नाधिकाक्षरो भवति तथापि 'हवइ' इत्येव पठितव्यम् , यतो नमस्कारवलयकादिग्रन्थेषु अनुवाद पंचपरमेष्ठीमंत्रमा पदे पदे एकेक संपदा कहेली छे / एम सात संपदा अने छेल्ली आठमी संपदा सत्तर अक्षर संख्यानी जणावेली छे / / 79 // 20 टीका-परमेष्ठीमंत्रमा जणावेलां पदो 'नमो अरिहंताणं' वगेरेमां सात संपदाओ क्रमशः बतावेली छे / आठमी संपदा 'मंगलाणं च सव्वेसिं पढम हवइ. मंगलं'–ए सत्तर अक्षरोनी छे, एम गणधर भगवंतादिए कहेलुं छे / बीजा केटलाक छेवटनी त्रण संपदाओ माने छ / जेम के. 1. एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो–ए सोळ अक्षर प्रमाणनी छठी संपदा छे। 25 2. मंगलाणं च सव्वेसिं-ए आठ अक्षर प्रमाणनी सातमी संपदा छे। 3. पढमं हवइ मंगलं-ए नव अक्षरोथी उत्पन्न थयेली आठमी संपदा छे। कह्यु छ के छेल्ली त्रण चूलिकामां अनुक्रमे सोळ, आठ अने नव अक्षरोवाळी संपदाओ छ। भक्तिमान् जे जीव तेने भणे के ते शाश्वत एवा स्थानने-मोक्षने पामे के। आ प्रकारे ईर्यापथिकी वगेरेमां पण संपदा विशे बुद्धिमानोए मतांतरो जाणी लेवां / 30 अहीं जो के 'हवइ' अने 'होइ' ए बेमां अर्थनी दृष्टिए कोईपण भेद नथी। वळी, 'होइ मंगलं' ए प्रमाणे पाठमां श्लोक अधिक अक्षरवाळो थतो नथी, (श्लोकना चरणना आठ अक्षरो बराबर जळवाई रहे छे। 'पढमं हवइ मंगलं'-ए पाठमां जेम नव अक्षर थाय छे तेम।) छतां 'हवइ' ए पाठ ज भणवो जोइए; केमके 'नमस्कारवलयक' वगेरे ग्रंथोमां कयुं छे के