________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। परिचय ___ आ प्रकरणना कर्ता याकिनीमहत्तरासूनु आचार्यशिरोमणि श्री हरिभद्रसूरि महाराज छ। तेमना नामयी कोण अपरिचित होय ? जैन साहित्यमां तेमनुं स्थान घणुं ज ऊंचुं छे। _ वि. सं. नी छठी शताब्दीमां (मतांतरे आठमी शताब्दीमा) तेओ विद्यमान हता एम इतिहासज्ञ पुरुषो कहे छे। तेमनो जन्म मेवाडना चित्तोडनगरनां एक राजपुरोहितने त्यां थयो हतो अने तेओ बाल्य-5 काळमां ज न्याय, व्याकरण वगेरे अनेक विषयोना पारंगत बन्या हता। तेमणे दीक्षा केवी रीते लीधी वगैरे तेमना चरित्रथी जाणी लेवू। दीक्षा पछी तेमणे जैन दर्शननो सर्वांगीण सुंदर रीते अभ्यास कर्यो अने तेओ तेमां निष्णात बन्या। तेओश्रीनी जैन दर्शन प्रत्येनी श्रद्धा अने बहुमान केवा उच्च प्रकारना हता, ते तेमना ग्रंथो ज कही आपे छे। विधि प्रत्ये पण तेमनो आदरभाव उच्च कोटिनो हतो। तेओनी कृतिओने जोईने केवळ जैन विद्वानो ज मुग्ध बने छे एवं नथी, जैनेनर 10 विद्वानो पण ते कृतिओनी मुक्तकंठे प्रशंसा करे छे / तेओए आगमो उपर अनेक टीकाओ रची छे अने दर्शन, योग, वगेरे विषयोमां पण अनेक स्वतंत्र ग्रंथोनू सर्जन कर्यु छ। जैन समाज उपर तेमना एटला बधा उपकार छे के जेनुं वर्णन ज न करी शकाय। ' संबोधप्रकरण 'मां देवतत्त्व, गुरुतत्त्व (सुगुरु अने कुगुरुनु स्वरूप), सम्यक्त्व, श्रावकधर्म, संज्ञा, लेश्या, ध्यान, आलोचना वगेरेनुं सुंदर वर्णन छ। ए ग्रंथमांथी आचार्य, उपाध्याय अने मुनि संबंधी 15 उपयोगी संदर्भ तारवीने अनुवाद साथे अहीं प्रगट करीए छीए। OAD KARO S HTAKA 118ROMA ADDA HEALMA ccocon