________________ [30] पंचसुत्तसंदब्भो॥ जावजीवं मे भगवंतो परमतिलोगनाहा अणुत्तरपुण्णसंभारा खीणरागदोसमोहा अचिंतचिंतामणी भवजलहिपोया एगंतसरणा अरिहंता सरणं // / तहा पहीणजरामरणा अवेअकम्मकलंका पणट्ठवाबाहा केवलनाणदसणा सिद्धिपुरनिवासी निरुपमसुखसंगया सव्वहा कयकिच्चा सिद्धा सरणं // तहा पसंतगंभीरासया सावजजोगविरया पंचविहायारजाणगा परोवयारनिरया पउमाइनिदसणा झाणज्झयणसंगया विसुल्झमाणभावा साहू सरणं // [-पंचसुत्त'-पावपडिग्घायगुणवीजाहाणसुत्त (1)-] अनुवाद ऐश्वर्यादि ऋद्धिवाळा (भगवंत), त्रणे लोकना ( योग-क्षेम करनारा.) समर्थ नाथ (रक्षक ), अनुत्तर (उंचामां उंचा तीर्थंकरनामकर्म वगेरे) पुण्यना निधान, राग-द्वेष-मोह जेओना निर्मूल क्षय थया छे तेवा, अचिंत्य सुखने विना मागे आपनारा माटे चिंतामणिथी पण अधिक, संसार-समुद्रने तरवा नौका समान अने एकांते शरण करवा योग्य, एवा अरिहंतोनुं मारे 15 जीवं (मुक्त न थाउं ) त्यांसुधी शरण थाओ! अरिहंतो मने शरण आपो! तथा, जेओनां जरा मरण सर्वथा क्षीण थयां छे, कर्मरूपी कलंक जेओने वेदवानां नथी, सर्व प्रकारनी व्याबाधाओ (पीडाओ-दुःखो) जेमनी नाश पामी छे, संपूर्ण ज्ञान अने दर्शन जेओने प्रगट थयां छे, जेओ सिद्धिपुर नामना नगरमां (मोक्षमां) रहेला छे, जगतना कोई सुखनी उपमा जेमां न घटे तेवा अनुपम सुखने जेओ पामेला (भोगवी रह्या ) छे अने जेओ सर्वथा 20 कृतकृत्य छे (जेओने हवे कई कर्तव्य शेष रह्यं नथी), ते सिद्धोनुं मारे (जावज्जीव) शरण थाओ। तथा, प्रशांत अने गंभीर आशय (हृदय ) वाळा, सर्व सावद्य (पाप) व्यापारथी निवृत्त थयेला, पंचविध आचारने (ज्ञानाचारादिने ) यथार्थ जाणनारा, परोपकार करवामां रक्त, पद्म (कमळ ) वगैरेनी उपमावाळा, शुभध्यान अने शास्त्राध्ययनमा सतत उद्यमवाळा अने जेओना भावो उत्तरोत्तर विशुद्ध थया करे छे, तेवा साधुओनुं मारे (जावजीव ) शरण थाओ ! परिचय ____ आ सूत्र घणुं ज प्राचीन छ / एना कर्ता कोई समर्थ पूर्वधर महर्षि होवा जोईए / आमां पांच सूत्रो आपीने साधुओने अत्यंत उपयोगी हकीकतोनुं वर्णन कयु छ / तेमांथी आ संदर्भ, जे नमस्कार विषयने उपयोगी जणायो ते तारवीने अर्थ साथे अहीं प्रगट कर्यो छे। / 25.