________________ [29] भत्तपरिन्नासंदभो॥ . (1) आराहणापुरस्सरमणबहियओ विसुद्धलेसाओ। संसारक्खयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं // 76 // 351 // अरिहंतनमुक्कारो इक्कोवि हविज जो मरणकाले / / सो जिणवरेहि दिहो संसारुच्छेअणसमत्थो // 77 // 352 // . मिठो किलिट्टकम्मो नमो जिणाणंतिसुकयपणिहाणो / कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरुत्ति सलिहओ // 78 // 353 // भावनमुक्कारविवजिआई जीवेण अकयकरणाई। गहियाणि अ मुक्काणि अ अणंतसो दवलिंगाई // 79 // 354 // आराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोकारो। तह सुगइमग्गगमणे रहुन्न जीवस्स अप्पडिहो // 80 // 355 // अवाणीऽवि अ गोवो आराहित्ता मओ नमुक्कारं / चंपाए सिहिसुओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ // 81 // 356 // अनुवाद तेथी विशुद्ध लेश्यापूर्वक आराधनामां पुरस्सर ( अप्रेसर, प्रगतिशील ) बनीने अने अनन्य हृदयवाळो थईने तुं संसारक्षयने करनार नमस्कारने मूकीश नहीं // 76 // मरणकाळे जो अरिहंतने एक पण नमस्कार थाय तो ते संसारनो नाश करवाने समर्थ छे 20 एम जिनेश्वरोए कहेलुं छे // 77 // ____कठोर कर्म करनारो 'चोर' छे तेथी शूलीथी हणाएलो, 'नमो जिणाणं' ए पदनुं मरण समये सारी रीते ध्यान करतो महावत 'कमलदल' नामे यक्ष थयो // 78 // ___ भाव नमस्कार वगरना पोताना कर्तव्यनी सिद्धि वगरना ( निष्फळ ) द्रव्यलिंगो जीवे अनंतवार ग्रहण कर्या अने मूक्या // 79 // 25 जीवने आराधना-पताका ग्रहण करवामां नमस्कार हाथ समान छे अने सुगतिरूप मार्गे जवामां अस्खलित रथ समान छे // 80 // अज्ञानी एवो गोवाळीओ पण नमस्कारनी आराधना करीने मरण पाम्यो; तेथी चंपानगरमां सुदर्शन नामे प्रसिद्ध श्रेष्ठीपुत्र थयो // 81 //