________________ [27] 10 गया। पंचपरमि द्वि-जयमाला // मणुयणाइंदसुरधरियछत्तत्तया, पंच-कल्लाण-सुक्खावली पत्तया / दंसणं णाण-ज्झाणं अणंतं बलं, ते 'जिणा' दितु अम्हं वरं मंगलं // 1 // जेहिं झाणग्गिबाणेहिं अइथड्डयं, जम्म-जर-मरण-णयरत्तयं दड्डयं / जेहिं पत्तं सिवं सासयं ठाणयं, ते महाँ दिंतु 'सिद्धा' वरं गाणयं // 2 // पंचहाचार-पंचग्गिसंसाहया, बारसंगाइसुयजलहिं अवगाहयो / मोक्खलच्छी महंती महं ते सया, 'सूरिणो' दितु मोक्खंगयासंगयां // 3 // घोरसंसारभीमाडवीकाणणे, तिक्खवियरालणहपावपंचाणणे / णट्ठमग्गाण जीवाण पहदेसया, वंदिमो ते "उवज्झाय' अम्हे सया // 4 // उग्गतवयरणकरणेहिं छीणंगया, धम्मवरझाणसुक्क झाणं गया। णिब्भरं तवसिरीए समालिंगया, 'साहवा (साहू) ते महा मोक्खपहमग्गया // 5 // अनुवाद जेमना उपर मनुष्यो, नागेन्द्रो अने देवताओ वडे त्रण छत्रो धारण करायां छे; जेओ गर्भ, 15 जन्म, व्रत, केवलज्ञान अने मोक्ष ए पांच कल्याणको वडे जगतने सुखश्रेणी आपे छे; तथा जेओ अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तध्यान अने अनन्तबलने प्राप्त थयेला छे ते जिनेन्द्रो 'अरिहंत भगवंतो' अमने परम मंगल आपो // 1 // जेओए पोताना ध्यानरूपी अग्निबाणोथी अत्यंत गर्वित ( दुर्जेय ) एवां जन्म, जरा तथा मरणरूपी त्रणे नगरो बाळी नाल्यां छे तथा जेओए शाश्वत मोक्षस्थानने प्राप्त कयुं छे ते उत्तम 20 'सिद्ध भगवंतो' अमने केवळज्ञान आपो // 2 // दर्शनाचार, ज्ञानाचार, तपाचार, वीर्याचार अने चारित्राचार-आ पांच प्रकारना आचाररूपी पंचाग्नि तपनी साधना करनारा, द्वादशांगादि श्रुतसागरमां अवगाहन करनारा अने मोक्षनी अंगता (कारणता-साधनता) ने पामेला एवा 'आचार्य भगवंतो' अमने सदा मोक्षरूपी महालक्ष्मी आपो // 3 // 25 तीक्ष्ण अने विकराळ नखवाळो पापरूपी सिंह जेमा छे एवा घोर संसाररूपी भयानक वनमा (मिथ्यात्व वडे ) सुमार्गने भूली आमतेम भटकता जीवोने ( मोक्षमार्गरूप कल्याणकारी ) सुमार्ग बतावनारा 'उपाध्याय भगवंतो' ने अमे सदा वंदीए छीए // 4 // जेमनुं शरीर घोर तपश्चर्या वडे क्षीण थयुं छे, जेओ श्रेष्ठ एवा धर्मध्यानमां तथा शुक्लध्यानमां लीन छे, तथा तपरूपी लक्ष्मीए जेमनुं गाढ आलिंगन कयु छे ते 'साधु भगवंतो' अमने 30 मोक्षमार्गमा प्रवृत्त करो // 5 // 1 उत्तमाः। 2 अवगाहकाः। 3 मोक्षाजतासंगताः।