________________ [26] 15 पंच-महा-परमि टि-संथ यं // तियसिंद-नरिंदनमंसियाण निद्दड्डधाय (इ) कम्माण / निजियरिउनिवहाणं नमो नमो जिणवरिंदाणं // 1 // तिहुयणसिहरम्मि पय (इ) ट्ठियाण निद्ववियमलकलंकाणं / सासयसुहनिलयाणं नमो नमो सव्वसिद्धाणं // 2 // पंचविहायारसमुद्दपारपत्ताण गुणमयंकाणं / आयरियाणं च तहा नमो नमो नाणसूरीणं // 3 // सयलसुओयहिपारंगयाण उवएसदाणदक्खाणं / निच्चमुवज्झायाणं नमो नमो खवियमोहाणं // 4 // अइदुद्धराई पंच वि धारंति महव्वयाई जे मुणिणो / तियलोयबंधवाणं नमो नमो सव्व-साहूणं // 5 // इय 'पंचमहापरमिद्वि-संथयं' जे कुणंति भावेण / पावंति ते अपावा, अजियसुहं निव्वुइं अइरा // 6 // . अनुवाद देवेन्द्रो अने नरेन्द्रोथी नमस्कार करायेला, घातिकर्मोने भस्म करनारा अने वैरी-समूहने जितनारा श्रीजिनेश्वरोने नमस्कार हो, नमस्कार हो // 1 // त्रण लोकना अप्रभाग उपर रहेला, कर्ममलरूप कलंकना अंतने पामेला, शाश्वत सुखोना . . स्थानरूप सर्व सिद्धोने नमस्कार हो, नमस्कार हो // 2 // पांच प्रकारना आचाररूपी समुद्रना पारने पामेला, गुणचंद्ररूप-(चंद्र समान उज्ज्वल 20 गुणवाळा ), तथा ज्ञानरूप सूर्यथी शोभता एवा आचार्योने नमस्कार हो, नमस्कार हो // 3 // समप्र श्रुतज्ञानरूपी समुद्रना पारने पामेला, उपदेश देवामां चतुर अने मोह-अज्ञाननो नाश करनारा एवा उपाध्यायोने नित्य नमस्कार हो, नमस्कार हो // 4 // ___ अति दुर्धर एवा पांचे महाव्रतोने जे मुनिओ धारण करे छे, तथा त्रण लोकना बंधु एवा , सर्व साधुओने नमस्कार हो, नमस्कार हो // 5 // 25 ___आपंच-महापरमेष्टि-संस्तव' ने भावपूर्वक जे भणे छे, ते पापथी रहित बनीने अजेय सुखवाळा मोक्षने जलदी पामे छे // 6 // परिचय आ स्तोत्र प्राचीन हस्तलिखित पत्र उपरथी मळी आव्युं छे। एना कर्ता विशे जाणवामां __ आव्युं नथी। 30