________________ विभाग] 437 नमस्कार स्वाध्याय / एएण थोत्तेण जो पंचगुरू वंदए, गुरुयसंसारघणवेल्लि सो छिदए / लहइ सो सिद्धसुक्खाइवरमाणणं, कुणइ कम्मिधणपुंजपजालणं // 6 // अरिहा सिद्धाइरिया उवझाया साहू पंचपरमेट्ठी। * एयाण णमुक्कारो, भवे भवे मम सुहं दितु // 7 // . आ स्तोत्रवडे जे पंच-परमेष्ठिओने वंदन करे छे ते विस्तृत संसारनी गहन वेलडीने कापे / छे, तथा सिद्धसुखादि उत्तम सन्मानने पामे छे अने कर्मरूपी इंधनना समूहने बाळी नाखे छे // 6 // अरिहंतो, सिद्धो, आचार्यो, उपाध्यायो अने साधुओ ए पांच परमेष्ठी ( उत्कृष्ट पदमां स्थित ) छ / आ (पांच परमेष्ठीओने ) करेलो नमस्कार मने भवोभवमां कल्याण आपो // 7 // परिचय आ स्तोत्र ‘पूजनरत्नाकर' प्रकाशक:-जैन सिद्धांत ग्रंथमाला, देहली, (पुष्प 3) ना 10 पृष्ठ 78 उपरथी लेवामां आव्युं छे / तेमां पंच परमेष्ठीना गुणो बताववामां आव्या छ / आ स्तोत्रना कर्ता विशे जाणवा मळ्युं नथी, पण कोई दिगंबर जैनाचार्यनी रचना जणाय छ / .