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________________ 15 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 433 धम्मज्झाणम्मि निरंतरेगचित्तप्पवत्तजोगाण / भवियाण सया देहे देवा संनिज्झयं दिति // 43 // पुत्थयकमलविहत्था सुयदेवी अक्खसुत्तवरहारा। कणयकमंडलुकुसुमं संतिकरी देवया भणइ // 44 // विस-सत्थ-चोर-राउल-गह-भूयभयं च तुज्झ देहम्मि / जम्मसए वि न होही एसा रक्खा कयम्हेहिं // 45 // असमाहाणं देहे जायइ थेवं पि जेण केणावि / / तं न कयाई होही मंतधरो एस अन्नो त्ति // 46 // पाएहिं रक्खपालो कणकमयंको हुआसणो जाणू / उर-नाहि-हिअयपही दो पाया (हत्या) पासमुहसीसं // 47 // धणपालो जयपालो अच्छुत्ता भयवई य वइरुवा / देवा हरिणि (ण) गमेसी वजधरो रक्खए सययं // 48 // ॐ आँ द्राँ णा औं ॐ ह्रीँ श्री क्षिप 3 स्वाहा / ' मतमवागरणपयं विजाणं एत्तकोडीणं॥४९॥ एएहिं अक्खरेहि अब्भुएहिं मंत-विजाणं / जं जं धरइ तं तं [चित्ते ? ] साहइ धुवं पुरिसो // 50 // धर्मध्यानमां निरंतर एकचित्ते जेमना योगो प्रवृत्त थया छे, ते भव्यात्माओना शरीरमां सदाकाळ देवो सांनिध्य करे छे // 43 // जेना हाथमा पुस्तक अने कमळ छे, जे अक्षसूत्र (माळा) अने श्रेष्ठ हारने धारण करे छे ते श्रुतदेवी अने जे कनकनुं कमण्डलु अने पुष्प धारण करे छे ते शान्ति(करी) देवता कहे छे:-॥४४॥20 ___'अमे तारा शरीरमां आ रक्षा करी छे तेथी सेंकडो जन्ममां पण तारा शरीरमां विष, शस्त्र, चोर. राजा. ग्रह अने भतनो भय नहीं थाय // 15 // . जो कोई पण विरोधी साधकना देहमां अल्प पण असमाधि (पीडा) उत्पन्न करवाना प्रयत्न करें तो पण साधकने असमाधि थाय नहीं; कारणके आ मंत्रधर साधक कोई विलक्षण (श्रेष्ठ ) छे (?) // 46 // 25 पगोनी कनकमृगना चिह्नवाळो रक्षापाळ, जानुओनी अग्निदेवता अने छाती नाभि, हृदय, बे हाथ, बे पडखा, मुख अने मस्तकनी अनुक्रमे धनपाल (कुबेर ), जयपाल ( ?), अच्छुप्ता, भगवती वैरोट्या, हरिणगमेषी अने इंद्र सतत रक्षा करे छे // 47-48 // ॐ आँ द्राँ हाँ आँ ॐ ह्रीं श्रीं क्षिप उ स्वाहा'-आने ( आ मंत्रने) करोडो विद्याओनुं अव्याकरण (जेनी व्याख्या न थई शके एq') पद मानेलं छे ( अर्थात् आमां करोडो विद्याओ 30 रहेली छे) // 49 // (?) मंत्रविद्याओना आ अद्भुत अक्षरोथी पुरुष चित्तमा जे जे ( इच्छा ) धारण करे छे ते ते सर्व निश्चये सिद्ध करे छे // 50 // 1 आ देवताओनो ते ते स्थानोमा न्यास करवानो होय एम लागे छे. प्रस्तुतमा न्यासना स्थानोनी ने देवताओनी संख्यानो मेळ मळतो नथी. 'कणकमयको' नो अन्वय अने 'पही' नो अर्थ बेसतो नथी. 2 जेनुं महत्त्व शब्दो न वर्णवी शके एवं.
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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