________________ 43 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / "ॐ नमोत्थु भयवओ सव्वस्स वि पवयणस्स जणस्स य / सुयसंतीदेवयाए पवयणदेवाण सव्वेसि // 29 // "ॐ नमोत्थु भयवओ इंदाइदिसाहिवजुहुत्तनामाण / धणयाइवासवंताण लोगपालाण पंचण्डं // 30 // "ॐ नमोत्थु भयवओ महइमाहवीरवद्धमाणसामिस्स / भवजलहितारणसहं तित्थमिणं देसियं जेण // 31 // " केसरसंचय चउ-अट्ठपत्त-सोलसदलं तिपागारं / गणिविजापढमपयं तत्थ समोसरणविनासो // 32 // जो आराहिउमिच्छे देवं धम्मं च तत्तचिंताए / तस्सेसो उवएसो सम्मत्तणुजाइणे सिट्ठो // 33 // कयकिच्चो वि नमसइ तित्थयरो केवले समुप्पण्णे / जेणे(स)य मओ इत्तो परमं सरणं जए नत्थि // 34 // “ॐ नमोत्थु भयवओ सव्वस्स वि पवयणस्स जणस्स य / सुयसंतीदेवयाए पवयणदेवाण सव्वेसिं // 29 // “ॐ नमोत्थु भयवओ इंदाइदिसाहिवजुहुत्तनामाण / धणयाइवासवंताण लोगपालाण पंचण्हं // 30 // “ॐ नमोत्थु भयवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स / ___ भवजलहितारणसहं तित्थमिणं देसियं जेण // 31 // ". . [ऊपरनी मत्राक्षर गर्भित गाथाओमा चार प्रकारनो धर्म, धर्मतीर्थ, प्रवचन, श्रुतदेवता, शांतिदेवता, प्रवचनदेवता, इन्द्रादि दिक्पालो, लोकपालो अने आ धर्मतीर्थना उपदेशक श्रीवर्धमान-20 खामीने नमस्कार छ।] ___ वच्चे केसराना समूह युक्त (कर्णिका सहित ) पछी अनुक्रमे चार-आठ अने सोळ पत्र युक्त, त्रण प्राकारवालू कमल चिंतववू, तेमां (वच्चे ) गणिविद्याना प्रथमपद अने समवसरणनी स्थापना करवी // 32 // जे सम्यक्त्वनो अनुयायी (सम्यक्त्वी) तत्त्वचिंतापूर्वक देव अने धर्मनुं आराधन 25 करवा इच्छे छे, तेना माटे आ उपदेश कह्यो छे // 33 // कृतकृत्य एवा श्रीतीर्थंकर भगवंत केवलज्ञान उत्पन्न थया पछी पण जे कारणथी (आ धर्म) तीर्थने नमस्कार करे छे (ते कारणथी) आ तीर्थ मान्य छे, (पूज्य छे); एनाथी उत्तम बीजें शरण जगतमां नथी // 34 //