________________ 460 सिरिगणिविजाथुत्तं / [प्राकृत नाऊण आयरिजइ आयरमाणो य जं परूवेइ / तं होइ जणादेयं तम्हा तियगस्स वि कमेण // 21 // सिक्खा जहोवइट्ठा पंडियपुरिसेण होइ घेतव्वा / सारसमुच्चयठिइ कप्पवरियचिंताहिगमणेण // 22 // तं मूलुत्तरगुणचरणकरणसम(म्म)त्तनाणसुद्धीए / पवरतरसुक्खपुरं दुल्लहलंभं भवारने // 23 // एसो हु धम्मतित्थो सासयसुक्खाभिलासजीवाणं / उप्पन्नकेवलेहिं उवइट्ठो जिणवरिंदेहि // 24 // एवं (न) भइऊण नरा अणाइकालप्पवाहरूवेणं / / बहवे सिद्धा बुद्धा मुत्ता पत्ता परं ठाणं // 25 // सयलसमीहियकरणीकचित्तचिंतामणिं नमसेह / / पंचपरमिडिरूवं कम्मक्खयकारणं इण्हि / / 26 // काऊण नमोकारं भूअ-भविस्साण वट्टमाणाणं / भरहेरवय-विदेहे सासयलोए ठिअजिणाणं // 27 // "ऊँ नमोत्यु भयवओ जइ-गिहधम्मस्स चउविगप्पस्स / सम्मदंसणमूलस्स धम्मतित्थस्स य तहेव // 28 // तेथी जाणीने आचराय अने आचरण करतो जे प्ररूपे ते लोकोने आदेय थाय छे; ते त्रिकना (ज्ञान-आचार-प्ररूपणाना) क्रमे ज लोकने माटे आदेय थाय छे // 21 // पंडित पुरुषे सारसमुच्चय अने स्थिति कल्प विषे(?) चिंतनपूर्वकना बोध वडे यथोपदिष्ट 20 शिक्षा ग्रहण करवी जोईए / / 22 // मूलोत्तर गुणरूप चरण, करण, सम्यक्त्व ( सम्यग्दर्शन ) अने ज्ञाननी शुद्धिथी सहित एवी उपर्युक्त शिक्षा भवारण्यमां दुष्प्राप्य छे अने श्रेष्ठ प्रकारना सुखोनुं नगर (स्थान) छे // 23 // जेमने केवलज्ञान उत्पन्न थयु छे एवा जिनेंद्रोए शाश्वत सुखना अभिलाषी आत्माओने माटे आ धर्मतीर्थ ( उपदेश) कयुं छे // 24 // 25 आ धर्मतीर्थने सेवीने घणा मनुष्यो अनादिकालथी प्रवाहरूपे सिद्ध थया, बुद्ध थया, मुक्त थया अने परमस्थानने पाम्या // 25 // . (हवे ) सकल समीहितने पूर्ण करवामां अद्वितीय विलक्षण चिंतामणिरूप अने कर्मक्षयना कारणभूत एवा पंचपरमेष्ठिस्वरूपने तमे नमन करो॥ 26 / / (ते आ रीते-) 30 भूत-भविष्य अने वर्तमान कालना, भरत-ऐरवत अने विदेह क्षेत्रना तेमज *शाश्वत लोकमां रहेला जिनोने नमस्कार करीने (नीचे मुजब मन्त्रोच्चारण करवू) // 27 // “ॐ नमोत्थु भयवओ जइ-गिहधम्मस्स चउविगप्पस्स / सम्मदसणमूलस्स धम्मतित्थस्स य तहेव // 28 // * देवलोकादिमा रहेली शाश्वत जिनप्रतिमाओने नमस्कार करीने