________________ 10 [25] सिरिगणिविज्जा थुत्तं // श्रीगुरुभ्यो नमः // अथ गणिविजा-“ॐ नमो भयवओ अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवझाय-सव्वसाहु-धम्म तित्थपवयणस्स, ॐ नमो भगवईए सुयदेवयाए संतिदेवयाए सव्वपवयण-5 देवयाणं दसण्हं दिसापालाणं पंचहं लोगपालाणं च' (? : ठः) स्वाहा।" एयाए विजाए हिअयनिहित्ताए धम्मकजाई।। जो आरंमेइ पुरिसो स एव पयमुत्तमं लहई // 1 // जेसिमिमो उवएसो गुरूहि संकेइओ हि उवएसा / ते पुजा भुवणस्स वि भवंति अइरेण कालेण // 2 // एयम्मि सिद्धभुवणत्थपरममंगल्लपवरकल्लाणे।। पंचपरमेट्ठिकित्तणमंतक्खरवीअगन्मम्मि // 3 // अरिहंतपवयणाधारसव्वजगजीवहिअकरुवएसे / कहियव्वे सोयव्वे धनाण मई परिप्फुरई // 4 // इह-परलोगस्स कए सविसेसत्थं गुरुवएसेण / / जो नाम जवइ पुरिसो सो लहई सव्वकजाई // 5 // अनुवाद गणिविद्या-“ॐ नमो भयवयो अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झाय-सव्वसाहु-धम्मति त्थपवयणस्स, ॐ नमो भगवईए सुयदेवयाए संतिदेवयाए सव्वपवयणदेवयाणं __दसण्हं दिसापालाणं पंचण्डं लोगपालाणं चे (? ठः ठः) स्वाहा // " 20 -- आ ( गणि) विद्याने हृदयमा स्थापन करवापूर्वक जे पुरुष धर्मकार्योनो आरंभ करे छे, ते खरेखर उत्तमपदने प्राप्त करे छे // 1 // __श्री जिनवचनमाथी गुरुए जेओने आ (विद्यानो ) उपदेश आप्यो छे तेओ थोडा ज समयमां जगतने पूज्य थाय छे // 2 // सिद्ध छे भुवनना अर्थो जेमा, परम मंगल अने परम कल्याणरूप, पंचपरमेष्ठिकीर्तन, मत्रा- 25 क्षरो अने मत्रबीजथी गर्भित (एवी आ विद्याने बतावनार) श्रीअरिहंत परमात्माना शासनना आधारभूत अने जगतना सर्व जीवोने हितकर एवा आ उपदेशने विषे कहेवामां तेमज सांभळामां धन्य आत्माओनी मति स्फुरायमान थाय छे। (कथन अने श्रवण धन्य आत्माओने ज प्राप्त थाय छे।)॥३-४॥ गुरुना उपदेशथी आ लोक अने परलोकने माटे जे कोइ पुरुष आ विद्याने विशेष अर्थ 30 सहित (अर्थज्ञानपूर्वक) जपे छे ते सर्व कार्योने प्राप्त करे छे-सिद्ध करे छे // 5 // 1 हीं णमो 2 लोगपालाणं ॐ ह्रीं अरिहंत देवं नमः-आ 1 अने 2 पाठांतर महाप्राभाविक नवस्मरण पृ. 74 मां आपेल छे. 3 कित्तणं-अहीं 'देवनागसुवण्ण.' इत्यादिनी जेम अनुसार लाक्षणिक छे.