________________ . 10 [24] परमेट्रिथ यं। ओमिति नमो भगवओ अरिहंत-सिद्धायरिय-उवज्झाय / रसवसाहुमुणि-संघ-धम्मतित्थप्पवयणस्स // 1 // सप्पणव-नमो तह भगवईइ सुयदेवयाइ सुहयाए / सिक्संतिदेवयाणं सिवपवयणदेवयाणं च // 2 // इंदागणि-जम-नेरइय-वरुण-चाउ-कुबेर-ईसाणं / बंभो नागु त्ति दसहमवि य सुदिसाण पालाणं // 3 // सोम-यम-वरुण-वेसमण-वासवाणं तहेव पंचण्हं / तह लोगपालयाणं सूराइगहाण य नवण्हं // 4 // साहतस्स समक्खं मज्झमिषं चेव धम्मणुट्ठाणं / सिद्धिमकिग्धं गच्छउ जिमाइनवकारओ धणियं // 5 // अनुवाद ॐ पूज्य अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व उत्तम साधुओ, मुनिओ, संघ, धर्म, 15 तीर्थ अने प्रवचनने नमस्कार थाओ // 1 // वळी, सुखने आपनारी भगवती श्रुतदेवताने, शिव अने शांति आपनार (शांति ) देवताओने, तेमज शिव (मंगल) प्रवचन (अधिष्ठायक ) देवताओने प्रणव-ॐ पूर्वक नमस्कार थाओ // 2 // वळी, पोतानी दिशानुं पालन करनारा इंद्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्म अने नाग-ए दशे दिक्पालोने ॐ पूर्वक नमस्कार थाओ // 3 // 20. वळी, सोम, यम, वरुण, वैश्रवण ( कुबेर ) अने वासव-ए पांचने, लोकपाल देवोने तथा सूर्य आदि नवग्रहो ( सूर्य, चंद्र, मंगळ, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु अने केतु ) ने पण ॐपूर्वक नमस्कार थाओ॥ 4 // जिन आदि ( ने करेला ) नमस्कारना प्रभावथी, उपर्युक्त बधानी समक्ष थतुं आ मारु धर्मानुष्ठान निर्विघ्नपणे अत्यंत ( उत्कृष्ट ) सिद्धिने पामो // 5 // परिचय आ 'परमेष्ठिस्तव' 'प्रतिष्ठाविधि' माथी मळ्| छ / प्रतिष्ठाविधि, दीक्षाविधि वगेरे धर्मानुष्ठानो करतां विघ्नोना निवारण अर्थ आ स्तोत्रनो पाठ करवामां आवे छे। आ स्तोत्रमा मंत्र-विद्या गूयेली छे / आ स्तोत्र पछी आपवामां आवेला 'गणिविजा' स्तोत्रनी शरुआतमां जे 'गनिविद्या' आपेली छे ते आ स्तोत्रनो विद्योद्धार छे। एटले ए विद्यानो 30 अहीं अलग पाठ आप्यो नथी। __. आ स्तोत्रनो साधनविधि अने महिमा 'गणिविद्या' स्तोत्रथी समजी लेवो / स्तोत्रना कर्ता विशे कई निर्देश मळ्यो नथी। 25