________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 425 परिचय आ स्तोत्रनी अनेक प्रतिओ हस्तलिखित जैन ज्ञानभंडारोमाथी मळी आवे छे / जैनानन्द पुस्तकालय-सूरत, डेला जैन उपाश्रय ज्ञानभंडार-अमदावाद, वर्धमान जैन आगममंदिर-पालीताणा, शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी हस्तक-शेठ अंबालाल चूनीलाल ज्ञानभंडार-पालीताणा, श्री. विजयमोहनसूरीश्वरजी जैन ज्ञानभंडार-पालीताणा, भांडारकर रीसर्च इन्स्टीटयूट-पूना, पूज्य / आगमप्रभाकर मुनिराज श्री. पुण्यविजयजी महाराजश्रीनो संग्रह तेमज श्री. जिनविजयजी मुनिनो संग्रह वगेरे भंडारोमांथी एक करतां वधु प्रतिओ, जेनी संख्या 24-25 जेटली थाय छे, ते प्राप्त करी हती। अहीं तेमांनी चार प्रतिओने सामे राखीने मूळपाठ तेमज पाठांतरो लेवामां आव्यां छे। J संज्ञावाळी प्रति ते श्री. जिनविजयजी मुनिए संपादित करी छपावेल स्तोत्रनां फॉर्स। संज्ञाथी श्री. जिनविजयजी मुनिए जेनी उपरथी पाठांतरो लीधां ते प्रति / / A संज्ञाथी जैनानन्द पुस्तकालय-सूरतना ज्ञानभंडारनी नं. 2407 नी 2 पत्रोनी प्रति, जेनी फोटोस्टेटिक कॉपी जैन साहित्य विकास मंडळना संग्रहमा छे, ते प्रतिने आदर्श तरीके लेवामां आवी छ। P संज्ञाथी जैनानंद पुस्तकालय-सूरतनी नं. 2394 नी प्रतिमांथी पाठांतरो लेवामां आव्यां छे। 15 आ स्तोत्र टीका अने हिंदी अनुवाद साथे 'मंत्रराजगुणमहोदधि' नामे ले. पं. श्री. जयदयाळ शर्मा, बिकानेरथी प्रसिद्ध थयुं छे / आ स्तोत्रनी स्वोपज्ञव्याख्या साथे रचना करनार श्री. जिनकीर्तिसूरि छे / तेमणे मूळ स्तोत्रनी 31 मी गाथामां पोताना गुरु श्री. सोमसुंदरसूरिनो उल्लेख कर्यो छे अने टीकामां आ स्तोत्रनी रचनानो संवत् 1494 नोंध्यो छे। - गुरु श्री. सोमसुंदरसूरिए तेमने देवकुलपाटमां आचार्यपदवी आपी हती। ए पदवीनो महोत्सव देवकुलपाटकना लाखा राजा. (वि. सं. 1439-1475) ना मान्य श्रेष्ठी वीशलना पुत्र चंपक श्रेष्ठीए को हतो। श्री. जिनकीर्तिसूरिए गिरनार उपर बेदरनगरना पातशाहना मान्य श्रेष्ठी पूर्णचंद्र कोठारीए बंधावेला जिनमंदिरनी प्रतिष्ठा करी हती / श्री. जिनकीर्तिसूरिए रचेला ग्रंथोमां नीचे मुजबना ग्रंथो उपलब्ध थाय छे:-(१) नमस्कार-25 स्तव-स्वोपज्ञ व्याख्यासहित, (2) उत्तमकुमारचरित, (3) श्रीपालगोपालकथा, (4) चंपकवेष्ठिकथा, (5) पंचजिनस्तवन, (6) धन्यकुमारचरित-दानकल्पद्रुम, सं. 1498, (7) श्राद्धगुणसंग्रह / आ स्तोत्र गणित विषयतुं होवाथी गाथाओना शब्दार्थ आपवा मात्रथी वाचकोने समजवामां मुश्केली पडे एम हतुं तेथी तेनुं सविस्तर विवेचन अहीं आपवामां आव्युं छे / __ 'नमस्कारव्याख्यानटीका'मां जणाव्युं छे के, पंच परमेष्ठीना जाप पूर्वानुपूर्वी, अनानुपूर्वी 30 अने पश्चानुपूर्वीपूर्वक गणवाथी चूडामणिशास्त्र अथवा निमित्तथी सिद्धि प्राप्त थाय छे / आ दृष्टिए आ स्तोत्रनुं महत्त्व विशेष प्रकारे छ / 20