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________________ [23] सिरिजिणकित्तिसरिरइयं सोववण्णवक्खासमेयं पंच पर मिटि न मुकार महथुत्तं / // ॐ // श्रीजिनाय नमः // जिनं विश्वत्रयीवन्द्यमभिवन्द्य विधीयते।। परमेष्ठिस्तवव्याख्या गणितप्रक्रियान्विता // 1 // तत्रादावभिधेयगर्भा समुचितेष्टदेवतानमस्काररूपमङ्गलप्रतिपादिकां गाथामाह परमिद्विनमुक्कारं थुणामि भत्तीइ तनवपयाणं / पत्थार भंगसंखा नटुंदिट्ठाइकहणेण // 1 // व्याख्या–परमेष्ठिनोहदादयस्तेषां नमस्कारः श्रुतस्कन्धरूपो नवपदाष्टसंपदाऽष्टषठ्यक्षरमयो महामन्त्रविशेषस्तं भक्त्या स्तवीमि / तस्य नमस्कारस्य नवसंख्यानां पदानां प्रस्तारो भैङ्गसंख्यानष्टर्मुद्दिष्टमादिशब्दादनुपूर्व्यादिगुणनमहिमा च एतेषां कथनेन // 1 // शब्दार्थ-हुं परमेष्ठी-नमस्कारने तेना नवपदोना प्रस्तार, भंगसंख्या, नष्ट, उद्दिष्ट वगेरे 15 कहेवा वड़े भक्तिपूर्वक स्तवं छु। - विवेचन-द्वादशांगीना सारस्वरूप पंचनमस्कार के परमेष्ठि-नमस्कारनी स्तवना जैन महर्षिओए अनेक प्रकारे करेली छे / कोईए तेना तत्त्वने आगमस्वरूपनी दृष्टिए प्रकाश्युं छे, कोईए तेने निमित्त, ग्रह, गणित, मंत्र अने तंत्रनी दृष्टिए निहाळी विविध प्रकारे प्रकाश्युं छे, ज्यारे श्रीजिनकीर्तिसूरि महाराजे नमस्कारने गणितनी दृष्टिए निहाळी तेना गूढ रहस्यने प्रकाश्युं छे / 20 स्तोत्रनी आ प्रथम गाथामां विषयतुं निरूपण करतां तेओ जणावे छे के, आ स्तोत्रमा हुँ नवपदोनो प्रस्तार, तेनी भंगसंख्या, नष्ट, उद्दिष्ट अने आदिपदथी आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी अने पश्चानुपूर्वी केवी रीते थाय ते दर्शावीश / अहीं ए स्पष्ट करवु जरूरी छे के, उपर्युक्त विषयनिर्देश प्रमाणे प्रथम विवेचन नवपदोना प्रस्तारनुं क जोईए पण ते विषय घणो लंबाणवाळो होई स्तोत्रकर्ताए तेनुं विवेचन बाकी राख्यु 25 छे अने त्यार पछीना विषयोने क्रमशः समजाव्या छे // 1 //
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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