________________ 398 चउन्विहज्हाणथुत्तं। [प्राकृत चउव्विहझाणगयं परमिहिमयपहाणतरतत्तं / झायइ अणवरयं सो पावइ परमाणंदं // 12 // इति चतुर्विधध्यानस्तोत्रम् // क्षीणवृत्तिवाळो योगी पुरुष ध्यान करे छे तेवा (योगीने) समप्र सिद्धिओ वशीभूत थाय छे 5 (जूओ चित्र नं० 16) // 11 // ध्यानना चार प्रकार (पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ अने रूपातीत ) प्रमाणे सालंबन (एटले वर्णात्मक) अने निरालंबन (वधारे सूक्ष्म थतुं आलंबन विनानुं) ध्यान (ध्याता अने ध्यान ए बनेनो अभाव थतां ध्येय साथे ज एकरूप बनी जाय एवं) जे अविरतपणे करे छे ते परम आनंदने प्राप्त करे छे // 12 // .. (स्तोत्र-परिचय) बार गाथातुं आ स्तोत्र स्व० श्रीमोहनलाल भगवानदास झवेरीना संग्रहमांथी, तेमनां विधवा सुधाबहेने आपेलं; जेमां आ स्तोत्र संबंधी चक्रोनी रेखाओ पण दोरेली हती। ए स्तोत्रने अनुवाद साथे संपादन करी ते रेखाचक्रोने चित्रनी रीते व्यवस्थित करी दश चक्रो आपवामां आव्यां छे / कुंडलिनीना विषयमां जैनाचार्योए जे थोडं घणुं खेडाण कयुं छे तेमां आ स्तोत्र भात पाडे 15 एवं छे / जैनेतर साहित्यमां कुंडलिनीना उत्थान माटे षट्चक्रभेद बहु जाणीती परंपरा छे पण आ स्तोत्रमा दश चक्रोनी जैन दृष्टिए माहिती आपी छे / आ माटे जैन साहित्यमा विशिष्ट माहिती होवी जोईए परंतु ते हजी प्राप्त थई नथी / प्राकृतभाषामां रचायेला आ स्तोत्रना कर्ता कोण हशे ते पण जाणी शकायुं नथी। 10 वळी सरखावो 'पातञ्जलयोगदर्शन' "क्षीणवृत्तेरमिजातस्येव मणेर्गृहीतृग्रहणग्राह्येषु तत्स्थतदअनतासमापत्तिः // (1.41.) जेम शुद्ध थयेलो स्फटिक मणि ते ते उपाधिना सान्निध्यथी ते ते उपाधिना रूपने पामे छे तेम ध्येयातिरिक्त सकल वृत्ति जेनी निरुद्ध थई गई छे एवं शुद्ध चित्त...सकल आलंबन विशे पूर्ण एकाग्र थवाथी, ते ते आलंबनना प्रकारने पामवारूप तदजनता पामे छे॥ * सरखावो हे. च. 'योगशास्त्र "एवं क्रमशोऽभ्यासावेशाद् ध्यानं भजेन्निरालम्बम् / समरसभावं यातः परमानन्दं ततोऽनुभवेत् // (प्र० 11, श्लो० 5) -आ प्रमाणे मनने उच्चता प्राप्त करवाना क्रमे अभ्यासनी प्रबलताथी निरालंबन ध्यान करे तेथी समरसभाव- परमात्मानी साथे अने अभिन्नपणे लय पामवा रूपने पामी ते पछी परमानंदपणुं अनुभवे //