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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। चउवीसदेव-जिणजणणि-जक्ख-जक्खिणिपवित्तपत्तम्मि। . मुद्धे विसुद्धचक्के झाएमि सयावि जिणसत्तिं // 6 // .. बत्तीसदले ल[ ल ]णाचक्के बत्तीससुरवइसमिद्धा / ह-रहियवंजणसिद्धा सरस्सई मह सुहं देउ // 7 // ह--क्षजुआ पणव-नमंतकलिआ य तिदलचक्कम्मि / आणक्खे एगक्खर महविजा सयलसिद्धिकरी // 8 // अ सि आ उ सा नमंता सोमकलारूवसोमचक्कम्मि / सोमसियवन्नझाणेण झाइआ हुंति सिवहेऊ // 9 // चक्कम्मि बंभबिंदु त्ति नामए बंभनाडिसहभृए / झाणापुरियपणवो भवियाणं कुणउ कल्लाणं // 10 // सिरिहंसनादचक्के हंसं विसुद्धफलिहसंकासं। जो पिक्खइ गलिअमणो तस्स वसे सयलसिद्धिओ // 11 // विशद्धचक्र जे कंठमा छे अने जेनां चोवीश पत्रो छे तेमां चोवीश देव ( तीर्थकरो ), तथा जिनेश्वरोनी चोवीश माताओ, तेमना चोवीश यक्षो अने चोवीश यक्षणीओ तथा कर्णिकामां जिनशक्ति एटले "अहै नमः" छे तेम हुं सदा ध्यान करूं छु ( जूओ चित्र नं० 11) // 6 // 13 .. ललनाचक्र जेनां बत्रीश पत्रो छे, ते बत्रीश इंद्रोथी समृद्ध अने 'ह' रहित एटले 'क' थी 'स' पर्यंत (32) तेमज ते मंत्रथी ( “सरस्वत्यै नमः" थी) सिद्ध थती सरस्वती देवी मने सुख आपो (जूओ चित्र नं० 12) // 7 // आज्ञाचक्रने त्रण पत्रो छे, तेमां 'ह' '' 'क्ष' थी युक्त अने 'ॐ नमः' थी आकलित (ह्रींकाररूपी) एकाक्षरी महाविद्या समग्र सिद्धिने आपनारी छे (जूओ चित्र नं० 13 ) // 8 // 20 सोमचक्र, जे सोमकळा (अर्धचन्द्रनी आकृति) स्वरूप छे, तेमां "अ सि आ उ सा नमः' मंत्रनुं चंद्र जेवा श्वेतवर्णरूपे ध्यान करतां ते शिवना ( एटले मोक्षना) कारणरूप बने छ (जूओ चित्र नं० 14 ) // 9 // ब्रह्मबिंदुचक्र, जे ब्रह्मनाडी (सुषुम्णा नाडी) साथे संयुक्त छे–तेनुं प्रणवथी आपूरित ध्यान भव्य पुरुषोनुं कल्याण करे छे (जूओ चित्र नं० 15) // 10 // श्रीहंसनादचक्रमां हंस (जीव) ने अत्यंत शुद्ध स्फटिक ( मणि ) जेवो,* जे गलित मनवाळो * सरखावो श्रीहेमचन्द्रसूरिरचित 'योगशास्त्र' "अर्हन्तं मूर्धनि ध्यायेत् शुद्धस्फटिकनिर्मलम् // सद्ध्यानावेशतः सोऽहं सोऽहमित्यालपन्मुहुः। निःशङ्कमेकतां विद्यादात्मनः परमात्मनः // " (प्र० 8, श्लो० 14, 15) शुद्ध स्फटिकनी माफक निर्मल एवा परमेष्ठी अरिहंतने मस्तक विशे चिंतववा, पछी ध्यानना आवेशमां 'सोऽहम् सोऽहम्' एम वारंवार बोलता बोलतां परमात्मा साथे पोताना आत्मानी एकता निःशंक चिंतववी। 25
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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