________________ 10 [22] चउविहज्झाणथुत्तं / [ चतुर्विधध्यानस्तोत्रम् / ] पिण्डत्थं च पयत्थं रूवत्थं रूववजियसरूवं / तत्तं परमिहिमयं गुरुवइष्टुं थुणिस्सामि // 1 // नमः सिद्धंतसमिद्धो चउदलियाहारचकि(क)मज्झठिओ। पणवो परमिट्ठिमओ पणतत्तजुओ सुहं देउ // 2 // चक्के साहिहाणे छक्कोणे मज्झठिओ पयाहिणओ / सत्तसरमहमंतो झाइझंतो दुहं हरउ // 3 // मणिपूरचकि अडदलि मज्झदिसासु च पंचपरमिट्ठी। विदिसासु नाण-दंसण-चारित्त-तवाइं झाएमि // 4 // सोलससरसोलसए महविजा विजदेविकलियदले। चक्के अणाहयक्खे गोयमसामि नमसामि // 5 // अनुवाद / 15 ध्यानतुं स्वरूप चार प्रकारनुं छे-(१) पिंडस्थ, (2) पदस्थ, (3) रूपस्थ अने (4) रूपातीत-ते प्रकारे परमेष्ठीमय वर्णो (अक्षरो) वडे केवी रीते ध्यान थाय ते गुरुए जे प्रमाणे उपदेश्युं छे ते प्रमाणे स्तवीश // 1 // मूलाधारचक्रनां चार पत्रो छे, ते 'नमः सिद्धम्' ना चार अक्षरोथी समृद्ध छे अने कर्णिकामां प्रणव ( ॐकार ) जे पंचपरमेष्ठीना पांच वर्ण (प्रथमाक्षर )थी निष्पन्न छे-तेनुं ध्यान सुख 20 आपनारं थाय छे (जूओ चित्र नं. 7) // 2 // स्वाधिष्ठानचक्र छ खूणानी आकृतिवाळु छ / ते आकृतिनी मध्यथी लईने प्रदक्षिणामां (फरतां क्रमशः) “णमो अरिहंताणं" ए सप्ताक्षरी महामंत्र छे ते प्रकारे ध्यान धरवामां आवे तो ते दुःखने हरनारुं नीवडे छे (जूओ चित्र नं० 8) // 3 // मणिपूरचक्र आठ पत्रवाळु छे / तेनी मध्यमां "श्रीअर्हद्भ्यो नमः" तथा दिशाओमां 25 "श्रीसिद्धेभ्यो नमः” "श्रीसूरिभ्यो (श्रीआचार्येभ्यो) नमः" "श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः" "श्रीसर्वसाधुभ्यो नमः"-ए पंच परमेष्ठी; तेमज विदिशाओमां "श्रीदर्शनाय नमः" "श्रीज्ञानाय नमः" "श्रीचारित्राय नमः" "श्रीतपसे नमः" ए प्रकारे छे तेम हुं ध्यान करुं छं (जूओ चित्र नं० 9) // 4 // अनाहतचक्र सोळ पत्रवाळु छे। तेमां षोडशाक्षरी "अरिहंत - सिद्ध- आयरिय- उवज्झायसाहू" महाविद्या छे, तेमज सोळ स्वरोथी सूचित ( सोळ ) विद्यादेवीओथी युक्त एवां सोळ 30 पत्रो छे, तेनी कर्णिकामा "श्रीगौतमस्वामिने नमः" छे, ते प्रकारने हुं नमस्कार करूं छु (जूओ चित्र नं० 10) // 5 //