________________ 395 विभाग नमस्कार स्वाध्याय। एवं जे परमिहिपंचगपयप्पण्हेसु ताई जणा जाणित्ता पइवासरं निअमणे धारंति झायंति अ। तेसिं दुहृतमहकम्मविगमा तेलुक्ककप्पहुमो एसो सो परमिटिमंतपवरो दिजा सुहं सासयं // 6 // [शार्दूलविक्रीडितम् / ] वृत्तिः –एवं जे० सुगम, नवरं परमेष्ठिं () परमेष्ठिपश्चकपदप्रश्नेषु तानि परमेष्ठिपदानि पञ्च / ज्ञावा निजमनसि धारयन्ति च ध्यायन्ति च, तेषामेव श्रीपञ्चपरमेष्ठिमन्त्रः त्रैकोक्यकल्पद्रुमः शाश्वतं सुखं करोत्विति // 6 // इति प्रश्नगर्भ पञ्चपरमेष्ठिस्तवनं भट्टारकप्रभुश्रीजयचन्द्रसूरिविरचितमिति // श्रीः // 20 आ रीते पंच परमेष्ठी मंत्रनां पांच पदोना प्रश्नोमां गूंथायेलां पांचे पदोने जे लोको जाणीने 10 हमेशां पोताना मनमां धारण करे छे अने तेमनुं ध्यान धरे छे तेमनां घणां दुष्ट आठे कर्मो दूर थाय छे / ते आ त्रण लोकमां कल्पवृक्षरूप श्रेष्ठ परमेष्ठी मंत्र शाश्वत सुखने आपो // 6 // [पांच नंबरना श्लोकमां विविध प्रश्नोना उत्तर-पदो वडे जे 'अष्टदलकमलबंध' प्रकट थाय छ [ते माटे जूओ चित्र नं० 6 नी आकृति ] (स्तोत्र-परिचय) . 15 आ स्तोत्रनी एक मात्र प्रति भांडारकर ओरियन्टल रीसर्च ईन्स्टीटयूट-पूनाना संग्रहसेक्शन नं. 13 मांथी एक पानानी प्रति मळी आवी ते ऊपरथी अहीं संपादित करवामां आव्युं छे। खोपज्ञ टीकावाळा आ स्तोत्रनी रचना श्रीजयचंद्रसूरिए करी छे; जे टीकानी अंते आपेली . पुष्पिका उपरथी जणाय छ। - आ श्रीजयचंद्रसूरि श्रीसोमसुंदरसूरिना शिष्य हता। तेओ सं. 1496 मा विद्यमान हता। तेमना हाथे प्रतिष्ठित मूर्तिओ उपरना लेखो सं. 1506 सुधीना मळ्या छ। पोतानी प्रकांड विद्वत्ताथी तेमने 'कृष्णसरस्वती' अगर 'कृष्णवाग्देवता' नुं बिरुद मळ्युं हतुं / तेमणे पोताना शिष्योने काव्यप्रकाश, सन्मतितर्क जेवा दुरूह ग्रंथो भणाव्या हता। तेमना उपदेशथी श्रीमाली पर्वत नामना श्रेष्ठीए एक लाख (श्लोक) प्रमाण ग्रंथो लखाव्या हता। ____ श्रीजयचंदसूरिए रचेला ग्रंथो पैकी (1) प्रत्याख्यानस्थानविवरण, (2) सम्यक्त्वकौमुदी अने (3) प्रतिक्रमणविधि-जाणवामां आव्या छ। - आ छ श्लोकात्मक काव्य उपरथीये तेमनी विद्वत्तानो परिचय मळे छे / तेमणे छ श्लोकमां पंचपरमेष्ठीना प्रश्नोने शृंखलाजातिस्त्रिर्गतः, पंचकृत्वो गतिः, चतुकृत्वो गतिः, गतागतद्विर्गतः, अष्टदलकमल वगेरे चित्रात्मक काव्यथी आ स्तोत्रने गूंध्यु छ / साहित्यना प्रकारमा भात पाडे एवी 30 आ स्तोत्रनी रचना छ / .... आ स्तोत्रने अनुवाद साथे अहीं आपवामां आव्युं छे / तेनां बे चित्रो नं. 5-6 मां आपेला छ। 25