________________ 390 पण्हगब्भं पंचपरमिट्टिथवणं / [प्राकृत किं रूवं अड्डविंदं हवइ ? दुहयरी का ? हरो आह सत्ता सेवित्ता के च सिद्धा ? किमु भणिय जिणो संपवजेइ दिक्खं ? / अत्थीणं बेइ खुद्दो किमु ? भणइ ससी केरिसं कामिचित्तं ? अंतद्धाणं अणंतं किमिह ? विजयए मंगलं किं च बीअं ? // 2 // 5 णमो सिद्धाणं / ' [पञ्चकृत्वो गतिः। वृत्तिः-आद्य( ब्य) वृन्दं न मुष्णातीत्येवं शीलं नमोषिद्धाणं च तृप्तं भवति / दुःखकरी न मा अलक्ष्मीः, नसमासार्थो न शब्दोऽस्ति, तेन समासः / उः शिवस्तस्य संबोधनं हे ओ! प्राक् सन्धौ नमो इति / सिद्धानामाज्ञां पालयित्वा सिद्धा भवन्ति / 'नमो सिद्धाणं' इति भणित्वा जिनो दीक्षां प्रतिपद्यते / क्षुद्रः कृपणः न इति भणति / माश्चन्द्रः प्राकृते संबोधने मो इति / सह इना कामेन रीति-४ (1) प्रश्न- सकल (जीवनिकायोने ) सुख अपानार पद कयुं ? उत्तर- णमो अरिहंताणं' तेनुं ध्यान धराय छे।x (2) [ 'पंचकृत्वो गति' नामक चित्रजाति वडे ‘णमो सिद्धाणं' पद प्रकट थाय छे ते संबंधी प्रश्नोत्तरो] (1) प्रश्न-आढयवृंद-धनिकोनो समूह केवो होय छे ? उत्तर-ण मोसि-(न मोषिन् ) -कदी पण चोरी न करनारो। (2) प्रश्न-वळी केवो होय छे ? उत्तर-धाणं-(धानं )-तृप्त परिपूर्ण मनवाळो / * रीति-२ (1) प्रश्न-दुःख करनारी शी वस्तु गणाय छे ? उत्तर-ण मा-(न मा)-अलक्ष्मी-दारिद्र्य / (2) प्रश्न-शिवनो पर्यायवाचक अक्षर जे 'उ' तेनुं संबोधनमां शुं रूप थाय ? उत्तर-ओ ! ( अहीं 'ण मा' अने 'ओ' नी संधि करवाथी णमो' पद थाय छे, __ अथवा 'णमा' अने शिवनो पर्यायवाची जे 'उ' तेनी संधि करवाथी पण 'णमो' पद थाय छे / ) xआ श्लोकमा ण-णमो-मोअ-अरि-रिहं-हंता-ताणं-आ शब्दो प्रश्नोना उत्तरवडे प्राप्त थाय छे अने तेमां क्रमशः पहेला-पहेला अक्षरोने शृंखला-सांकळनी आकृतिमा लखवाथी णमो अरिहंताणं पद प्रकट थाय छे, तेथी तेने शंखलाजाति नामक बंध मानवामां आवे छे तथा ते ज णमो अरिहंताणं पद बीजी, त्रीजी अने चोथी रीतिए पण प्रश्नोना उत्तरोथी प्रकट थाय छ / एटले ते त्रिर्गत-त्रण प्रकारोथी गत-प्राप्त मनाय छे / तेनी चित्र-जातिमां गणना थाय छे। जूओ चित्र नं. 5 / ___ * अहीं चित्रकाव्यने लीधे द्धाणंने बदले धाणंनो प्रयोग छे, अथवा इद्धाणं-(इद्धाशं)-ओजस्वी आज्ञा करनारा, एम समजवू /