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________________ [20] सिरिजिणदत्तमुरिविरइयं नमुका र रहस्सथ वणं // ॐ नमो अरहंताणं भगवंताणं तिलोगनाहाणं / / जिणचंदाणं तिहुअणगुरूण तिजइक्कसाराणं // 1 // तेलुक्कमंगलाणं तेलुक्कुत्तममुणीसराणं च / तिहुअणच्चिअमहाणं चरित्तसुअधम्मपभवाणं // 2 // ॐ सिरि-हिरि-धिइ-कित्तिओ बुद्धी लच्छीओ सिद्धि-रिद्धीओ। सव्वदेवयाओ जिणपवयण-विजमाईणं // 3 // भवणवई-वणयराणं जोइसियाणं विमाणवासीणं / देवा देवीओ वा सक्काइया सुरिंदा य // 4 // तस्सामाणिय-दिसि लोगदेवा य तायतीसा य / परिसोववन्नगा तह सव्वे वि सुरा सुरीओ अ॥५॥ गह-रिक्ख-तारगाणं देवा देवीओ तिरियलोगम्मि / 15 . झंभग - मुक्खिय- (सुखित्त )-गिह-देस-दव्वसमयाण भावाणं // 6 // रक्खंतु मे सरीरं सव्वभया असेस-देवाणं / / भूय-पिसायाईणं, खुद्दाणं तिरिय-मणुयाणं // 7 // __अनुवाद त्रणे जगतना नाथ, जिनचंद्र, त्रिभुवनगुरु, त्रणे जगतमां अनन्य सारभूत, त्रणे लोकमां 20 मंगलस्वरूप, त्रणे लोकमां उत्तम मुनीश्वर, त्रिभुवनपूजित होवाने कारणे श्रेष्ठ (त्रणे भुवन वडे सत्कारित अने पूजित), चरित्र अने श्रुतधर्मना उद्भवस्थानरूप एवा श्रीअरिहंत भगवंतोने हुँ ॐ कारपूर्वक नमस्कार करूं छु // 1-2 // ॐ श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, सिद्धि अने ऋद्धि देवीओ; जिन प्रवचन अने विद्या वगेरेनी सर्व देवताओ (प्रवचनदेवीओ, विद्यादेवीओ वगेरे सर्व देव ओ); भवनपति, 25 व्यंतर, ज्योतिष्क अने विमानवासीना सर्व देवो तेमज देवीओ तथा शकेन्द्र वगेरे देवेन्द्रो; इन्द्रना सामानिक देवो, दिक्पाल देवो, लोकपाल देवो, त्रायस्त्रिंश देवो तथा पर्षदामां रहेला सर्व देवो अने देवीओ; ति लोकमां रहेला ग्रह-नक्षत्र-ताराओना देवो अने देवीओ; जंभक देवताओ; सुंदर क्षेत्र, घर, देश, द्रव्य, काल अने भावना देवो अने देवीओ-ए सर्वे मारा शरीरनुं सकल (दुष्ट) देवोना, भूत-पिशाच वगेरेना, क्षुद्र तिर्यंचो अने मनुष्योना सर्व भयोथी (तेओए करेला 30 उपद्रवोना कारणे उत्पन्न थता सर्व भयोथी) रक्षण करो // 3-7 // 1 कोई मुनिमा पवित्र भाव उत्पन्न थयो होय तो देवताओ तेनी रक्षा करे छ /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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