________________ 387 15 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / आहीणं वाहीणं रोगायंकाण णहभावाणं (1) / चक्खुसमुणंतह (?) साइणि-जोइणिकयाण महा // स्वाहा // 8 // ॐ आपखं ( आएज ) सोहग्गं सुजयं विझ(ण )यं च सुजससामित्तं / सुमइत्त-सुसीलत्तं सुसंजमत्तं सुसंमत्तं // 9 // सनाणं सुचरितं कुणंतु तह परममंगलत्तं च / ईसरियत्तसुद(ह)त्तं पणयाणं भव्वसत्ताणं // 10 // अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झायाणं च सव्वसाहू य ( सव्वसाहूणं)। केवलिपन्नत्ताणं सुअधम्मंच (म्माणं) चरित्तधम्माणं (सुअधम्मचरित्तधम्माणं)॥११॥ एएसिं पभावेण सिझंतु समीहियाणि सव्वाणि / अम्हाण सुगुरुजिणदत्तसुद्धधम्मनिरयाणं // 12 // .. 10 ____ तथा राक्षससमूहो, शाकिनी, जोगणी वगेरेयी कराता आधि, व्याधि, रोग, आतंक अने नष्टभावोथी (?) मारा शरीरनुं रक्षण करो // 8 // ॐ सर्व देवो अने देवीओ ! प्रणत एवा भव्य प्राणीओने आयुष्य, सौभाग्य, सुजय, विजय, सुयश, स्वामित्व, सुमति, सुशील, सुसंयम, सुसम्यक्त्व, सत्ज्ञान अने सुचरित्र आपो; तथा (तेमर्नु) परम मंगल, ऐश्वर्य अने सुख करो॥९-१०॥ श्री अरिहंतो, सिद्धो, आचार्यो, उपाध्यायो अने सर्व साधुओ, केवलिप्रज्ञप्त श्रुतधर्म अने चारित्रधर्म-ए सर्वना प्रभावथी परम गुरु श्रीजिनेश्वर भगवंते आपेल (उपदेशेल) शुद्ध धर्ममां तत्पर एवा अमारा सर्व समीहित (वांछित ) सिद्ध थाओ // 11-12 // (छेल्ली गाथामां कर्ताए 'जिणदत्त' एवं निजनाम श्लेषथी योज्युं छे / ) परिचय आ स्तवन 'शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी हस्तक जैन श्वेतांबर भंडार-लीबडीनी प्रति नं. 3324 ( डा.नं 118 ) नी एक पानानी प्रति ऊपरथी संपादित करीने आपवामां आव्यु छ। आ स्तोत्रना कर्ता प्रसिद्ध जैनाचार्य श्रीजिनदत्तसूरि छे / तेओ प्रतिभाशाली तत्त्वज्ञ अने मांत्रिक हता। तेमनो जन्म सं. 1132 मां धोळकामां थयो हतो। तेमना पितानुं नाम मंत्री वाछिग अने मातानुं नाम बाहडदेवी हतुं / सं. 1141 मां तेमणे दीक्षा लई सोमचंद्र मुनि नाम धारण कयुं / 25 ___ अभ्यासकाठमां तेमनी बुद्धिनी तीव्रता भणावनारने मुग्ध करी दे एवी हती / एक वखत तेमने भणावणार पंडिते 'नवकार' नी व्युत्पत्ति करतां कह्यु के–'न विद्यते वकारो यत्र स नवकारः।' त्यारे आ बुद्धिशाळी सोमचंद्र मुनिए ए व्युत्पत्तिने खोटी ठरावतां जवाब आप्यो के'नवकरणं नवकारः। भणावनार पंडित आ जवाबथी चकित थई गया। ____ आचार्य थया पछी तेओ जिनदत्तसूरि नामथी प्रसिद्धि पाम्या / तेमणे चैत्यवासीओ सामे 30 प्रबळ हाथे काम लीधुं हतुं अने सिद्धांतचर्चामा प्रभावशाली शब्दोथी सिद्धांतस्वातंत्र्य प्रगट कर्यु हतुं। तेमनी विद्वत्ताथी अजमेरनो राजा अर्णोराज आकर्षायो हतो। 20