________________ 386 [प्राकृत पंचनमुक्कारफलं। सढिसयं विजयाणं पवराणं जत्थ सासओ कालो / तत्थ वि जिणनवकारो इय एस पढिजए निचं // 14 // एरावएसु पंचसु पंचसु भरहेसु सु चिय पढंति / जिणनवकारो पंवरो सासयसिवसुक्खदायारो // 15 // जेण मरतेण इमो नवकारो पाविओ कयत्येण / सो देवलोऍ गंतुं परमपयं तं पि पावेइ // 16 // एसो अणाइकालो अणाइजीवो अणाइजिणधम्मो / तइया वि ते पढंता एयं चिय जिणनमुक्कारं / / 17 // जे केई गया मुक्खं गच्छंति य के वि कम्ममलमुक्का / ते सव्वेवि य जाणसु जिणनवकारप्पभावेणं // 18 // नहु किंचि तस्स पहवइ डाइणि-वेयाल-रक्ख-मारिभयं / नवकारपभावेणं नासंति य सयलदुरियाई // 19 // पांच महाविदेह क्षेत्रना उत्तम 160 विजयो छे के जेमां शाश्वत ( एकसरखो सुखनो) समय छे, तेमा पण आ प्रसिद्ध श्रीजिन-नवकार निरन्तर भणाय छे // 14 // 15 पांच भरत अने पांच ऐरवत क्षेत्रमा पण शाश्वत सुखने आपनारो आ ज नवकारमंत्र गणाय छे / / 15 // ___ मरती वखते जे कृतार्थ पुरुषे आ नवकार-मंत्रने प्राप्त कर्यो छे, ते देवलोकमां जाय छे अने परम-पदने पण पामे छे // 16 // ___ आ काळ अनादि छे, आ जीव अनादि छे अने आ जिन-धर्म पण अनादि छे, त्यारथी 20 लईने (अनादि काळथी) आ जिन-नवकार ते भव्य-जीवो वडे भणाय छे / (अर्थात् आ नमस्कार शाश्वत छ।)॥ 17 // __ जे कोई मोक्षमां गया छे, अने जे कोई कर्म-मलथी रहित बनीने मोक्षमां जाय छे, ते सर्वे श्रीजिन-नवकारना प्रभावथी गया छे, एम निश्चयपूर्वक समजो // 18 // नवकारना प्रभावथी डाकिनी, वेताल, ग्रह अने मरकी वगेरेनो भय काई करी शकतो नथी, 25 तथा बधां पापो नाश पामे छे // 19 // 1 एसो व पढिजए पढम A; एसो पढिज्जए नवरं / / 2 एरावएहिं पंचहि, पंचहिं भरएहिं सुs: एरवएहिं पंचहिं, पंचहिं सु / 3 मंतो / 4 ते य इमो N / 5 सो गंतुं दिवलोयं A / 6°लोइ गंतुं। 7 एसु चिय / 8 क्वारो 1 / 9 के वि गया N A | 10 केइ A| 11 ते सव्वे च्चिय ; तेसु च्चिय / 12 जाणह A1-13 वेणं 8 / 14 न हु तस्स किंचि प; न य किं A / 15 °रिक्ख / 16 व्व A /