________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / वाहि-जल-जलण-तकर-हरि-करि-संगाम-विसहरभयाई / नासंति तक्खणेणं जिणनवकारप्पभावेणं // 20 // इय एसो नवकारो भणिओ सुर-सिद्ध-खयरपमुहेहिं / जो पढइ भत्तिजुत्तो सो पावइ परमनिव्वाणं // 21 // अडवि-गिरिरनमज्झे भयं पणासेई सुमरिओ संतो। रक्खइ भवियसयाई माया जह पुत्तभंडाइं // 22 // * थंभेइ जलं जलणं चिंतियमिचो वि पंचनवकारो। अरि-मारि-चोर राउल-घोरुवसगं पणासेइ // 23 // *हिअयगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निच्च / / कम्मट्ठगंठिदोघट्टथट्टयं ताण परिणटुं // 24 // *धन्नाण मनोभवणे सद्धाबहुमाणनेहबुड्डिल्लो। मिच्छत्ततिमिरहरणो वट्टइ नवकारवरदीवो // 25 // *नवकाराओ अन्नो सारो मंतो न अस्थि तीलोए / .. तम्हा अणुदिणं चिय झायव्वो परमभत्तीए // 26 // श्री जिन-नवकारना प्रभावथी व्याधि, पाणी, अमि, चोर, सिंह, हाथी, संग्राम अने सर्प 15 आदिना भयो तत्काळ नाश पामे छे / / 20 // - देवताओ, सिद्धो अने विद्याधरोए आ नवकारने गण्यो छे / जे कोई भक्तिपूर्वक आने भणे छे, ते परम-निर्वाण (मोक्ष) ने पामे छे // 21 // जंगल, पर्वत के अरण्यनी मध्यमां स्मरण करायेलो आ नवकार भयनो नाश करे छे अने * 'माता जेम पुत्र-दौहित्रोनुं रक्षण करे छे तेम आ सेंकडो भव्योनुं रक्षण करे छे // 22 // 20 ____ आ पंच नमस्कार चिंतववा मात्रथी पण पाणी अने अग्मिने थंभावी दे छे तथा शत्रु, मरकी, चोर अने राजाओना घोर उपसर्गोनो अत्यन्त नाश करे छे // 23 // जेओना हृदयरूपी गुफामां नमस्काररूपी केसरी सिंह सदा रहेलो छे, तेओनां आठ कर्मनी गांठरूप हाथीओनो समूह समस्त प्रकारे नाश पामेलो छे // 24 // वळी, मिथ्यात्वरूपी अंधकारने हरनारो एवो आ नमस्काररूपी श्रेष्ठ दीपक, जेमां श्रद्धारूप 25 दिवेट अने बहुमानरूपी तेल छे, ते धन्य पुरुषोना मनरूपी भवनमां शोभे छे // 25 // त्रणे जगतमां आ नवकारथी बीजो साररूप मंत्र नथी, तेथी अत्यंत भक्तिपूर्वक निरंतर तेनुं ध्यान करवू जोईए // 26 // . 1°इ सासयं ठाणं / 2 एषा 21 अङ्कस्था गाथा A प्रतौ 27 / 3°इ चिंतिओ मंतो। 4 मंतो। 5 एषा 23 अङ्काङ्किता गाथा A प्रतौ 21 / * एतच्चिह्नाङ्किहितं गाथाचतुष्कं आदर्श नास्ति। 6 टकम्मदों A1 728 गाथा A प्रतौ 22 अङ्काङ्किता। . ...