________________ [19] पंच नमुक्कार फलं। घणघाइकम्ममुक्का अरहंता तह य सव्वसिद्धा य / आयरियउवज्झाया पवरा तह सव्वसाहू य // 1 // एयाण नमुकारो पंचन्ह वि पवरलक्खणधराणं / भवियाण होइ सरणं संसारे संसरंताणं // 2 // उड्डमहे तिरियम्मि जिणनवकारो पहाणओ नवरं / नर-सुर-सिवसुक्खाणं [सु]कारणं इत्थ भवणम्मि // 3 // तेण इमो निचं चिय पढिर्ज सुत्तुहिएहिं अणवरयं / / होइ चिय दुहदलणो सुहर्जणओ भवियलोयस्स // 4 // जाएं वि जो पढिजइ जेण य जायस्स होई बहुरिद्धी / अवसाणे वि पढिाइ जेण मओ सुग्गई जाइ // 5 // आवइहिं पि पढिाइ जेणं य लंघेइ आवइसयाई / / रिद्धीहि पि" पढिाइ जेण य सा जाइ वित्थारं // 6 // 10 अनुवाद। घनघाती कर्मोथी रहित अरिहंतो, सर्वसिद्धो, प्रवर एवा आचार्यो, उपाध्यायो तेमज सर्वसाधुओ-ए रीते श्रेष्ठ लक्षणने धारण करनारा ए पांचेय परमेष्ठीओने करेलो नमस्कार संसारमा भटकता भव्य-प्राणिओने शरणरूप छे // 1-2 // ऊर्ध्वलोक, अधोलोक अने तिर्यग्लोकमां श्रीजिन( कथित ) नवकार प्रधान छे तथा 20 मनुष्यनां सुखो, देवनां सुखो अने मोक्षनां सुखोनू परम कारण छे // 3 // ते कारणे सूतां अने ऊठतां निरंतर नवकार( मंत्र ) ने गणवो जोइए। ते निश्चयपूर्वक भव्य-लोकोनां दुःखोने हणनारो अने सुखोने उत्पन्न करनारो छे // 4 // ___जन्मसमये जो ते भणवामां आवे तो जन्म लेनारने बहु संपत्ति आपनारो थाय छे अने मृत्यु समये जो भणवामां आवे तो मृत्यु पछी सुगतिने आपनारो थाय छे // 5 // 25 आपत्तिना समये पण जो तेने भणवामां आवे तो सेंकडो आपत्तिओथी पार पमाय छे अने संपत्तिना समये भणवामां आवे तो ते संपत्तिओ विस्तार पामे छे // 6 // 1°घायकममुका / 2 °रिया उ° N / 3 °महो 8; °मह A1 4 °यलोए जि A1 5 °णवो न°। 6 णं एत्य A17 भुव 81 8 °ढियइ A.; जए 19°जणणो भ. | 10 °एहिं जो / 11 जेणेव / / 12 इ फलरिद्धि A / 13 मुओ। 14 सोगई। 15 जेणेव N | 16 सो प°। 17 जेणेसा /