________________ 274 [प्राकृत पंचनमुक्कारफलथुत्तं। एवं च उभयलोगे वि सुक्खमूलं इमं मुणेऊण / आराहणामिलासी भद्द ! तुम सइ सरिज जओ // 113 // . पंचन्ह नमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ। भावेण कीरमाणो होइ पुणो बोहिलाभाय // 114 // पंचन्ह नमुक्कारो धन्नाण भवक्खयं करिताणं / हिंययम्मि अणुमुयंतो विसुत्तियावारओ होइ // 115 // पंचन्ह नमुक्कारो एवं खलु वनिओ महत्थु त्ति / जो मरणम्मि उवगए अभिक्खणं कीरए बहुसो // 116 // सत्त पण सत्त य नवक्खर-पमाण-पयड-पंचपयं / तित्तीसक्खरचूलं सुमरह नवकारवरमंतं // 117 // इय संविग्गसिरोमणिजिणेसरायरियपायपंकयब्भसलो / भणइ जिणचंदररी दूरीकयकलिमलं नमुक्कारफलं // 118 // ___ इति पञ्चनमस्कारफलस्तोत्रम् / wwwwww ए प्रमाणे बने लोकमां आ (नमस्कार) सुखनुं मूळ छे, एम जाणीने, आराधनानी 15 अभिलाषावाळा हे भद्र ! तुं एनुं सदा स्मरण कर; कारण के पंचपरमेष्ठीने करेलो नमस्कार जीवने हजारो भवोथी मुकावे छे, तथा भावपूर्वक स्मरण कराय तो ते बोधिलाभ माटे थाय छे // 113 थी 114 // ___ पांच परमेष्ठीओने करेलो नमस्कार धन्य पुरुषोने भवनो क्षय करावे छे अने हृदयथी सेने नहि छोडनारने ते विस्रोतसिका एटले उन्मार्गे जता चित्तने वारनारो बने छे // 115 // 20 ए रीते पंच नमस्कार महान् अर्थवाळो छ एम शास्त्रोमां वर्णन करेलुं छे, अने ए कारणे मरण अवसर आवे त्यारे तेनुं निरंतर अने वारंवार स्मरण कराय छे // 116 // ते सात, पांच, सात, सात, अने नव अक्षर प्रमाण छे, अने प्रगट पांच पदोवाळा अने तेत्रीस अक्षर प्रमाण श्रेष्ठ चूलिकावाळा उत्तम श्रीनमस्कार-मंत्रनुं तमे निरंतर स्मरण (ध्यान) करो // 117 // 25 ए रीते संविग्नशिरोमणि श्रीजिनेश्वरसूरिना चरण-कमलने विषे भ्रमर समान श्रीजिनचंद्रसरि, पापमळने दूर करीने नवकारतुं फळ कहे छे // 118 // 1 पंचपइ न / 2 हिययं अ°s J / 3 अक्खरतित्तीसवरचूलं 8 JI