________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। कालंतरभावि फलं तहविहमिहभवियममभवियं च / इहभवियमत्थकामा उभयभयसुहावहा सम्मं // 105 // इहभवसुहावहा तत्थ ताव अकिलेसभवणओ ताण / . आरुग्गपुव्वगं तह निविग्धं ताण माणणओ // 106 // परभवसुहावहा पुण सुत्तविहीए सुठाणविणिओगा। पंचनमुक्कारफलं अंह भन्नइ अन्नभवियं पि॥१०७॥ जइ वि न तजम्मे चिय सिद्धिगमो कह वि जायइ तहावि / पत्तनमुक्कारा इकसि पि किं किर न विराहिता // 108 // उत्तमदेवेसु तहा कुलेसु विउलेसु अतुलसुहकलिया। हिंडित्ता पजते सिझंति व चेव विहुयरया // 109 // इह पुण परमत्थेणं नाणावरणाइयाण कम्माणं / पइखणमणंतपुग्गलविगमम्मी जायमाणम्मी // 11 // पाउणइ नमुक्कारस्स पढमवन्नं नवकारमह सेसे / वन्ने पत्तेयं चिय तहष्णंतविसुद्धिसब्भावे // 111 // एवं इक्केकं पिहु अक्खरमचंतकम्मखयलब्भ। जस्स स कहं न वंछियफलदाई होइ नवकारो // 112 // ते(नमस्कार )नु काळांतर भावि फळ बे प्रकारतुं छे-१. आ भव-संबंधी अने 2. अन्य भवसंबंधी। आ भव-संबंधी फळ बने भवमां सम्यक् सुखने आपनारा अर्थ-कामनी प्राप्तिरूप छ। तेमां अर्थ-काम आ भवमां सुखने आपनारा एटले-अक्लेश के अल्प-क्लेशथी मळनारा, रोग रहित अने विनरहितपणे उपभोगमा आवनारा (थाय छे) तथा परभवमां सुखने आपनारा छे एटले 20 सूत्रोक्त विधि मुजब सुंदर स्थानमा सत्क्षेत्रोमा विनियोग करवाथी थाय छे। हवे अन्य भवसंबंधी पंच-नमस्कारनुं फळ ए छे के-नमस्कारने पामेला अने तेनी जरा पण विराधना नहि करनारा आत्माओ जो कोई कारणसर ते ज भवने विषे सिद्धगतिने न पामे, तो उत्तम देवपणे उत्पन्न थाय छे अने त्यांथी विपुल कुलोमां अतुल सुखथी युक्त एवं मनुष्यपणुं मेळवे छे // 105 थी 109 // ज्ञानावरणीय आदि कर्मोनां अनंत पुद्गलो प्रतिक्षण दूर थवाने कारणे परमार्थथी नमस्कारना 25 प्रथम अक्षर 'न'कारनो लाभ थाय छे। शेष प्रत्येक अक्षरोनो लाभ पण क्रमे करीने अनंतगुणनी विशुद्धि थवाथी थाय छे // 110 थी 111 // ए रीते जेनो एकेक पण अक्षर अत्यंत कर्मक्षय थवाथी मळे छे, ते नमस्कार कोने वांछित फळदायी न थाय ? // 112 // 15 / 5 तजन्म। ___1 भवसु / 2 परमं सु.। 3 °ओगो। 4 अह मन्न / 7 इक पि किर तमविराहिंता / 8 किर तमविराहिंता / 6 जायए तह वि