________________ प्राकृत 376 पंचनमुक्कारफलथुत्तं / / तह एस नमुक्कारो इहलोगगिहाउ जीवपहियाणं / परलोयपहपयट्टाण परमपत्थयणसारिच्छो // 98 // जह जह तस्स वणरसो परिणमइ मणम्मि तह तह कमेण / खयमेइ कम्मगंठी नीरनिहित्तामकुंभु व्व // 99 // तव नियमसंजमरहो पंचनमुक्कारसारहिपउत्तो / नाणतुरंगमजुत्तो नेइ नरं निव्वुईनयरं // 10 // जलणो वि होज सीओ पडिपहहुत्तं वहिज सुरसरिया / न य नाम निजइ इमो परमपयपुरं नमुक्कारो // 101 // आराहणापुरस्सरमणन्नहियओ विसुद्धसुहलेसो / संसारुच्छेयकर ता मा सिढिलसु नमुक्कारं // 102 // एसो हि नमुक्कारो कीरइ नियमेण मरणकालम्मि / जं जिणवरेहिं दिट्ठो संसारुच्छेयणसमत्थो // 103 // अक्खेवेणं कम्मक्खओ तह य मंगलागमो नियमा। तत्काल चिय सम्मं पंचनमुक्कारकरणफलं // 104 // तथा आ लोकरूपी घरथी नीकळीने परलोकना मार्गे प्रवर्तेला जीवरूपी पथिकोने आ नमस्कार परम पथ्यदन-भाता तुल्य छे // 98 // जेम जेम तेना वर्णोनो रस मनमां परिणाम पामे छे, तेम तेम क्रमे करीने पाणीमा स्थापन करेला काचा कुंभनी माफक जीवनी कर्मग्रंथी क्षयने पामे छे // 99 // पंच-नमस्काररूपी सारथि जेमां हांकनार छे, अने ज्ञानरूपी घोडा जेमा जोडायेला छे, एवो 20 तप, नियम अने संयमरूपी रथ मनुष्यने निर्वृति नगरीए लई जाय छे // 100 // अग्नि कदाच शीतल थई जाय अने सुर-सरिता-गंगा कदाच सांकडा मार्गवाळी थई वहेवा मांडे परंतु आ नमस्कार परमपदपुर-मोक्षे न लई जाय, ए बने नहीं // 101 // अनन्य हृदय अने विशुद्ध लेश्या वडे आराधन करायेलो आ नमस्कार संसारनो उच्छेद करनारो छे, ए कारणे तेमां शिथिल न थाओ-तेना ऊपरनो आदर मंद न करो // 102 // म मरणकाले विधिपूर्वक [ स्मरण ] करातो आ नमस्कार संसारनो उच्छेद करवाने समर्थ छे, एम खरेखर, श्रीजिनेश्वरोए जोयेलुं छे // 103 // ___पंच-नमस्कारने [स्मरण ] करवानुं तात्कालिक फळ अक्षेपे एटले शीघ्रताथी कर्मनो क्षय करे छे अने निश्चितपणे मंगळ करे छे / / 104 // 15 | 2 संसारच्छेय° / 3 °समठ्ठो / 4 °ओं य तह मं°s। 5 तकालिं 1°तं च होज चिय , तकालि चिय।