________________ विभाग 375 नमस्कार स्वाध्याय / अहह तडत्यो जाओ नूणं भवजलहिणो अहं अज।। अन्नह कहिं अहं कह व एस एवं समो जोगो // 91 // धन्नो हं जेण मए अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि / पंचन्ह नमुक्कारो अचिंतचिंतामणी पत्तो // 92 // किं नाम अज अमयत्तणेण सव्वंगियं परिणओ हैं। किं वा सयलसुहमओ कओ अकंडेणं केणावि // 93 // इय परमसमरसापत्तिपुव्वमायनिओ नमुक्कारो। निहणइ किलिट्टकम्मं विसं व सियधारणाजोगो // 94 // जेणेस नमुक्कारो सरिओ भावेण अंतकालम्मि / तेणाहूयं सुक्खं दुक्खस्स जलंजली दिन्नो // 95 // एसो जणओ जणणी य एस एसो अकारणो बंधू / एसो मित्तं एसो परमुवयारी नमुक्कारो॥९६॥ .. सेयाण परं सेयं मंगल्लाणं च परममंगलं / पुनाण परमपुन्नं फलं फलाणं नमुक्कारो // 97 // अहो हो ! आजे हुं भवसमुद्रना तटने पाम्यो छु; अन्यथा क्या हुं ? क्यां आ ? अने क्यां 15 * मारो तेनी साथेनो सरखो योग होय // 91 // / हुं धन्य छु के, जेणे अनादि-अनंत भवसमुद्रमा अचिंत्य चिंतामणि एवा पांच-परमेष्ठीनो नमस्कार प्राप्त कर्यो छे // 92 // . शुं हुं आजे सर्व अंगोमां अमृतपणुं पाम्यो छु ? अथवा अकाळे ज शुं कोईए मने सकल सुखमय कर्यो छे ? // 93 // 20 ए रीते परम शमरसापत्तिपूर्वक आचरेलो नमस्कार, शीत धारण( शीतोपचार )नो प्रयोग जेम विषने हणे तेम क्लिष्ट–कर्मोने हणी नाखे छे // 94 // ____ अंतकाळे जेणे आ नमस्कारवें भावपूर्वक स्मरण कयुं छे, तेणे सुखने आमंत्रण आप्यु छे अने दुःखने तिलांजलि दीधी छे // 95 // आ नमस्कार ए पिता छे, ए ज माता छे, ए ज अकारण बंधु छे, ए ज मित्र के अने 25 एज परम उपकारी छे // 96 // कल्याणमां परम कल्याण, मांगलिकोमा परम मांगलिक, पुण्योमा परमपुण्य अने फळोमां परमरम्य फळ पण आ नमस्कार ज छे // 97 // 1 समाओगो2 °डे वि के 3 °णं परमरम्मं /