________________ [प्राकृत . पंचनमुक्कारफलथुत्तं। संविग्गेणं मणसा अखलियफुडमणहरेण य सरेण / पउमासणिओ करवद्धजोगमुद्दो य कारणं // 83 // सम्मं संपुग्नं चिय समुच्चरिजा सयं नमुक्कार। उस्सग्गेणेस विही अह बलगलणा तहा न पहू // 84 // तन्नामाणुग 'अ सि आ उ सत्ति पंचक्खरे तहवि सम्म / निहुयं पि परावत्तिज कह वि अह तत्थ वि असत्तो // 85 // ता झाएजा 'ॐ इति संगहिया जं इमेण अरहंता / असरीरा आयरिया उवझाया मुणिवरा सव्वे // 86 // एयनामाइनिपैनवनसंधिप्पओगओ जम्हा / सव्वन्नुपहे एसो 'ॐकारो किर विणिहिट्ठो // 87 // एयज्झाणा परमिद्विणो फुडं झाइया भवे पंच / अहवा जो एवं पि हु झाएउं होज असमत्थो // 88 // सो पासट्ठियकल्लाणमित्तवग्गेण पंचनवकारं / निसुणिज पढिजंतं हिययम्मि इमं च भावेजा // 89 // एसो स सारगंठी एस स को वि हु दुलंभलंभु त्ति / एसो स इट्ठसंगो एयं तं परमतत्तं ति // 9 // * अंत समये संवेगशील मन वडे, अस्खलित, स्पष्ट अने मधुर स्वर वडे तथा करबद्ध योगमुद्राथी युक्त, शरीरने पद्मासनमा राखीने सम्यक् प्रकारे संपूर्ण नमस्कारनुं स्वयं उच्चारण करवु ए उत्सर्ग विधि छ; अथवा बळ घटवाथी जो तेम करवा समर्थ न होय, तो परमेष्ठीओना नामने 20 अनुसरनारा 'अ-सि-आ-उ-सा' एवा पांच अक्षरोने सम्यक् प्रकारे मौनपणे परावर्त्तन-जाप करे, जो कोई कारणे तेम करवा पण अशक्त होय तो 'ॐ' एवा एक अक्षरखें ध्यान करे, कारण के-ए अक्षरो वडे अरिहंत, अशरीरी, आचार्य, उपाध्याय, अने सर्व मुनिवरो संगृहीत थयेला छ। ए पांचेय नामोनी आदिमां रहेला अक्षरोनी संधिना प्रयोगोथी निश्चये आ ॐकार बनेलो छे, एम सर्वज्ञ परमात्माओए आदेश कर्यो छे। एनुं ध्यान करवाथी निश्चयपूर्वक पांचेय परमेष्ठीओनुं स्पष्टपणे ध्यान 25 कयु छ अथवा जे ए( एक अक्षर )नुं ध्यान करवाने पण समर्थ नथी ते पासे रहेला कल्याण मित्रोना समुदाय पासेथी पंचनमस्कारने सांभळे अने सांभळती वखते हैयामां आ प्रमाणे भावना करे // 83 थी 89 // आ नमस्कार ए सारनी गांसडी छे, आ नमस्कार ए मने इष्टनो समागम छे अने आ नमस्कार ए एक परमतत्त्व छे // 90 // / 4 1साइजा। 2 उज्झाया JI 3 °निसन्न होइ। 7 भाविज्जा / 8 °गो इयं / एहि एसो। 5 परमेट्रिणो S1-6 शाएउ