________________ विभाग] 373 नमस्कार स्वाध्याय। आउरभए भडो वा अमोहमिकं पि लेइ जैइ सत्थं / आबद्धमिउडिभडसंकडे रणे कजकरणखमं // 76 // एवं न आउरत्ते सक्का बारसविहं सुयक्खधं / सव्वं पि विचिंतेउं सम्मं तग्गयमणो वि तओ // 77 // मोत्तुं पि बारसंग स एव मरणम्मि कीरए सम्म / पंचनमुक्कारो खलु जम्हा सो बारसंगत्थो // 78 // सव्वं पि बारसंगं परिणामविसुद्धिहेउँमित्तागं / तकारणभावाओ कह न तदत्यो नमुक्कारो // 79 // तग्गयचित्तो तम्हा समणुसरिजा विसुद्धसुहलेसो / तं चेव नमुक्कारं कयत्थयं मन्नमाणो उ // 8 // को नाम किर सकनो कनामयसच्छहं नमुक्कारं / नो आयरिज मरणे रणे व्व सुहडो जयपडागं // 81 // - इक्को वि नमुक्कारो परमिट्ठीणं पगिट्ठभावाओ। सयलं किलेसजालं जलं व पवणो पंणोल्लेइ // 82 // तथा बांधी छे भृकुटी जेमणे एवा सुभटोथी व्याप्त रणसंकट' वखते मरणना भयथी सुभट 15 जेम कार्य करवाने समर्थ एक ज अमोघ-शास्त्रने धारण करे छे; ते रीते अंतकाळे अगर पीडा समये तद्गत मनवाळा पण सकल द्वादशांग श्रुतस्कंधने सविस्तर चिंतववा माटे समर्थ थता नथी, तेथी मरण समये द्वादशांगने छोडी सम्यक् प्रकारे आ परमेष्ठी-नमस्कार्नु ज तेओ स्मरण करे छे, . . कारण के ते नमस्कार द्वादशांगीनो ज अर्थ छे // 76 थी 78 // - सघळुये द्वादशांगनुं परिणाम विशुद्धिना हेतुमात्र छ / नमस्कार पण ते ज कारण स्वरूप 20 होवाथी द्वादशांगना अर्थरूप केम न गणाय ? // 79 // - ते माटे तद्गतचित्त अने विशुद्ध शुभ लेश्यायुक्त बनीने आत्माने कृतार्थ मानता ते नमस्कारखं ज सम्यगीतिए वारंवार स्मरण करवू जोईए // 80 // मरण वखते रणमां जयपताका ग्रहण करनार सुभटनी जेम गमे ते सकर्ण-सावधान पुरुष कर्णने अमृतना छंटकाव तुल्य नमस्कारनो आदर न करे ? // 81 // प्रकृष्ट भावथी परमेष्ठीओने करेलो एक पण नमस्कार, पवन जेम जळने शोषवी नाखे छे तेम सकल क्लेश-जाळने छेदी नाखे छे / / 82 // 25 __1 भएण सुहडो 6 पल्लेइ / / 2 जह सत्थं / 3 मुत्तुं पिs | 4 °हेउमेत्तागं / 5 °लेसा /