________________ 372 पंचनमुक्कारफलथुत्तं। [प्राकृत हहो देवाणुपिया ! पुणरुत्तं पत्थिओ सि इत्थ तुमं / संसारजलहिसेउं सिढिलिजसु मा नमुक्कारं // 69 // जं एस नमुकारो जम्मजरामरणदारुणसरूवे / संसारारनम्मी न मंदपुग्नाण संपडइ // 70 // विज्झइ राहा वि फुडं उम्मृलिजइ गिरी वि मूलाओ। गम्मइ गयणयलेणं दुलहो य इमो नमुक्कारो // 71 // सव्वत्थऽनत्थ वि धीधणेण सरणं ति एस सरियन्वो / सविसेसं पुण इत्थं समहिगयाराहणाकाले // 72 // आराहणापडागागहणे हत्थो इमो नमुक्कारो। सग्गापवर्गमग्गो दुग्गइदारग्गला गरुई // 73 // पढियव्वो गुणियव्वो मुणियव्बो समणुपेहियव्वो य / एसऽनया वि निच्चं किमंग! पुण मरणकालम्मि? // 74 // गेहे जहा पलित्ते सेसं मुत्तूण लेइ तस्सामी।। एग पि महारयणं आवइनित्थारणसमत्थं // 75 // 18 हे देवानुप्रिय ! फरीफरीने तने प्रार्थना करीए छीए के, संसार-सागरमां सेतु समान नमस्कार प्रत्ये तुं शिथिल (आदरवाळो) बनीश नहीं // 69 // कारण के, जन्म-जरा-मरणथी वधारे भयंकर स्वरूपवाळा आ संसार-अरण्यमां मंद पुण्यवाळा जीवोने आ नमस्कार प्राप्त थतो नथी // 70 // राधा-पुतलीने स्पष्टपणे वींधी शकाय, पवर्तने पण मूळथी उखेडी शकाय तथा आकाशनी 20 सपाटी पर फरी शकाय पण एक नमस्कारने पामवो ए ज दुर्लभ (कार्य) छे // 71 // सर्वत्र कोई पण काळे अने स्थळे बुद्धिमान पुरुषे 'आ ज एक शरण छ' एम मानीने नमस्कारतुं स्मरण कर जोईए, अने आराधना काळे-मरण समये तो तेनुं विशेषपणे स्मरण कर जोईए // 72 // आ नमस्कार ए आराधनारूपी पताकाने ग्रहण करवा माटे हाथ छे, स्वर्ग अने अपवर्गने माटे 25 मार्ग छे, तथा दुर्गतिओना द्वारोने रोकवा माटे मोटी अर्गला छे // 73 // बीजा समये पण आ नमस्कार नित्य भणवालायक, गणवालायक, सांभळवालायक अने सारी रीते अनुप्रेक्षा-चिंतवन करवालायक छे, तो पछी मरणकाळ माटे तो पूछवू ज शुं ? // 74 // घर सळगे त्यारे घरनो स्वामी जेम शेष वस्तुने छोडीने आपत्ति निवारण करवा माटे समर्थ एवा एक ज महारत्नने ग्रहण करे छे // 75 // 1°गसग्गोग