________________ 370 [प्राकृत पंचनमुक्कारफलथुत्तं। जागरणसुयणछीयणचिट्ठणचंकमणखलणपडणेसु / ' एस किर परममंतो अणुसरियव्वो पयत्तेणं // 54 // जेणेस नमुक्कारो दत्तो पुनाणुबंधिपुग्नेणं / नारयतिरियगइओ तस्सावस्सं निरुद्धाओ // 55 // न स पुणरुत्तं पावइ कयाइ किर अयसनीयगोत्ताई। जम्मंतरे वि दुलहो तस्स न एसो नमुक्कारो // 56 // जो पुण सम्मं गुणिउं नरो नमुक्कारलक्खमक्खंडं / पूएइ जिणं संघं बंधइ तित्थयरनाम सो॥५७॥ हुंति नमुक्कारपभावओ य जम्मंतरे वि किर तस्स / जाईकुलरूवारुग्गसंपयाओ पहाणाओ॥ 58 // ताव न जायइ चित्तेण चिंतियं पत्थियं च वायाए / कारण य पारद्धं जाव न सरिओ नमुक्कारो // 59 // अन्नं च इमाउ चिय न होइ मणुओ कयाइ संसारे / दासो पेसो दुभगो नीओ विगलिंदिओ चेव // 6 // 10 15. जागतां, सूता, छींकतां, बेसतां, चालतां, स्खलना पामतां के नीचे पडतां आ परममंत्रने ज आदरपूर्वक निश्चये अनुसरवो जोईए-वारंवार स्मरण करवो जोईए // 54 // . ... पुण्यानुबंधी पुण्यवाळा जे आत्माए आ नवकारने प्राप्त कर्यो छे, तेनी नरक अने तिर्यंच गतिओ अवश्य रोकाई गई छे // 55 // ___वळी, कडुं छे के, आ नमस्कार जेणे क्यांईथी पण निश्चये प्राप्त कर्यो. छे तेने वारंवार अप20 यश अने नीच गोत्र आदिनी प्राप्ति थती नथी तथा जन्मांतरमां पण तेने फरीवार आ नमस्कारनी प्राप्ति दुर्लभ थती नथी // 56 // वळी, जे मनुष्य एक लाख नमस्कारने अखंडपणे गणे तथा श्रीजिनेश्वरदेव अने संघनी पूजा करे, ते तीर्थंकर-नामकर्म बांधे छे // 57 // नमस्कारना प्रभावथी जन्मांतरमां पण प्रधान जाति, कुल, रूप, आरोग्य अने संपदाओ 25 निश्चयथीं प्राप्त थाय छे // 58 // चित्तथी चिंतवेलं, वचनथी प्रार्थेलं अने कायाथी प्रारंभेलं कार्य त्यां सुधी ज थतुं नथी के ज्यां सुधी आ नमस्कार स्मरवामां आव्यो नथी // 59 // वळी, आ नमस्कारथी मनुष्य संसारमा कदी पण दास, प्रेष्य, दुर्भग, नीच के विकलेन्द्रियअपूर्ण इन्द्रियवाळो थतो नथी / / 60 // 1 इमाओ चिय।