________________ विभाग] 369 नमस्कार स्वाध्याय / तं पि असेसं जाणसु सम्मं सन्भावगम्भविहियस्स / पंचनमुक्काराराहणस्स लीलाइ य लवु त्ति // 47 // उड्डाहोतिरियतिलोगरंगमज्झम्मि अइसयविसेसो। . देव्वं खेत्तं कालं भावं च पडुच्च चुञ्जकरो // 48 // दीसइ सुणिजए वा जो को विहु कह वि कस्स विजियेस्स / सव्वो वि सो नमुक्कारसरणमाहप्पनिष्फनो // 49 // जलदुग्गे थलदुग्गे पव्वयदुग्गे मसाणदुग्गे वा। अन्नत्थ वि दुग्गपए ताणं सरणं नमुक्कारो // 50 // वसियरणुच्चाडणथोभणेसु परखोभथंभणाईसु / एसो चिय पञ्चल्लउ तहा पउत्तो नमुकारो // 51 // मंतंतरपारद्धाइं जाई कजाई ताई विसमाई / ताणं चिय नियसुमरणपुव्वारद्धाण सिद्धिकरो // 52 // ता सयलाओ सिद्धीओं मंगलाइं च अहिलसंतेणं / सव्वत्थ सया सम्मं चिंतेयव्वो नमुक्कारो // 53 // सुरेन्द्र पण लांबा काळ सुधी जे देवलोकनुं पालन करे छे, ते सघळु सदभावपूर्ण पंच-नमस्कारनी 15 थयेली आराधनानी लीलानो ज एक लव-अंश छे, एम जाणो. // 33 थी 47 // ____ ऊर्ध्व, अधो अने तिर्छा स्वरूप त्रण लोकरूपी रंगमंडपमां द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावने आश्रयीने जे कोईने, जे काई, जे कोई विजयी जीवनो आश्चर्यजनक अतिशयविशेष देखाय छे * 'अथवा संभळाय छे, ते सर्व पण नमस्कारना स्मरणनो ज एक महिमा जाणवो // 48-49 // - जळदुर्गमां, स्थळदुर्गमां, पर्वतदुर्गमां, स्मशानदुर्गमां, अथवा अन्यत्र पण दुर्ग एटले कष्ट-20 पदमा एक नवकार ज त्राण अने शरण छे // 50 // वशीकरण, उच्चाटन, थोभण, क्षोभ अने स्तंभन आदि कार्योमा विधिपूर्वक सदा प्रयुक्त थयेलो नमस्कार ज समर्थ छ / 51 // अन्य मंत्रोथी प्रारंभेलां जे कार्यों मुश्केल बन्यां होय ते सर्व पण नमस्कारना स्मरणपूर्वक प्रारंभेलां होय तो शीघ्र सिद्ध थाय छे // 52 // ते कारण माटे सकल सिद्धिओ अने मंगलोने इच्छता आत्माए सर्वत्र सदा सम्यक् प्रकारे नवकारने चिंतववो जोईए // 53 // 25 1 दव्वं खितं / / 2 वि जणस्स 3 °सु सुइखोभ SJI 6 सिद्धिउ / | 4 एसु च्चिय पच्चलओs | 5 °ई सव्वाई