________________ [प्राकृत पंचनमुक्कारफलथुत्तं। माणसपमुहमहासरसरियादहसायराण सलिलाई। पलयपवणो ब्व समकालमेव सत्तो वि सोसेउं // 39 // तिलुक्कपूरणत्थं झत्ति विउब्बियमहल्लबहुरूवो / परमाणुमित्तरूवो वि तह य होउँ लहु समत्थो // 40 // तंह ऍक्ककरंगुलिपंचगस्स पत्तेयमग्गभागेसु / मेरुपणगाउँ ऍक्के कमिककालं धरणसत्तो // 41 // किं बहुणा संतं पि हु असंतयं तह असंतमवि संतं / वत्थू ऍक्कखण चिय दरिसेउमलंकरेउँ वा // 42 // नमिरसुरविर्सरसिरमणिमऊहरिंछोलिविच्छुरियपाओ / भूभंगाइट्टपहिसंभमुट्टितपरिवारो // 43 // चिंताणंतर सहस त्ति संघडताणुकूलविसयगणो / अणवरयरइरसाविलविलासकरणिक्कदुल्ललिओ // 44 // निम्मलओहिन्नाणानिमेसदिट्ठीई दिट्ठदट्ठव्वो। समकालोदयसमुतिसयलसुहकम्मपयई य // 45 // रिद्धिप्पबंधबंधुरविमाणमालाहिवत्तणं सुइरं / पालइ अखलियपसरं सुरलोए किर सुरिंदो वि // 46 // . एकहेला वड़े ग्रहचक्रने पाडवा अने भूतलने भमाडवामां समर्थ, लीलापूर्वक सकल कुलाचलना समुदायने चूरवा अने मानस-प्रमुख महासरोवर, सरिता, द्रह अने सागरोना पाणीने प्रलयकालना पवननी जेम एकीसाथे शोषवामां पण समर्थ, मोटा अने घणा एवा वैक्रियरूपो वडे एकीसाथे त्रण 20 लोकने पूरवामां, तथा परमाणु मात्र स्वरूप करवामां पण जे समर्थ, एक हाथनी पांच आंगळीओ ऊपर प्रत्येकना अग्र भागमा एकीसाथे पांचेय मेरुने धारण करवामां समर्थ-वधारे शुं कहेवू? एक क्षणमां सत् वस्तुने असत् अने असत् वस्तुने सत् देखाडवाने अने करवाने निश्चयथी समर्थ तथा नमता एवा देवसमूहना मस्तक ऊपर रहेल मणिना किरणनी श्रेणि वडे व्याप्त छे चरणो जेना, / भ्रूभंग वडे आदेश करायेलो अने हर्षित थयेलो ससंभ्रमपणे उभो थतो छे परिवार जेनो, चिंत25 वतांनी साथे तरत ज संघटित थतो छे अनुकूळ विषयोनो समुदाय जेने, रतिना रस वडे भरपूर विलास करवामां निरंतर अनुरक्त, निर्मल अवधिज्ञान अने अनिमेष दृष्टि वडे जोया छे जोवायोग्य पदार्थो जेणे, समकाळे उदय पामेली छे सघळी शुभकर्मनी प्रकृतिओ जेने तथा ऋद्धिना प्रबंधथी मनोहर एवा विमानोना समुदायोर्नु प्राप्त थयुं छे अधिपतिपणुं जेने, अस्खलित प्रसरवाळो 1 °पवणु व्व / 2 तह इक्व / 3 °उ इके / 4 वत्थू इक s / 5 उंच J1 6 विसुरसिरिम° 'टीए /