________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / 365 मणपवणचंचलखेरखुरुक्खयक्खोणितरलतुरगालं। सोलससहस्सपरिसंखजक्खरक्खापरिक्खित्तं // 30 // नवनिहिचउदसरयणप्पभावपाउन्भवंतसयलत्थं / छक्खंडभरहखित्ताहिवत्तणं लब्भए भुवणे // 31 // तं पि हु किर सद्धासलिलसेयपरिवड्डियस्स तस्सेव / पंचनमुक्कारतरुस्स को वि फलविलसियविसेसो // 32 // जंपि य सियदेवंसुयसंवुयसुरसयणसुंदरुच्छंगे। सिप्पिपुडंते मुत्ताहलं व उववञ्जई तत्तो // 33 // आजम्मं रम्मतणू आजम्ममुदग्गजोव्वणावत्थो। आजम्मं रोगजरारयसेयविवन्जियसरीरो // 34 // आजम्मं न्हारुवसट्ठिमंसरुहिराइतणुमलविमुक्को। आजम्मं अमिलायंतमल्लवरदेवदूसधरो // 35 // उत्तत्तजच्चकंचणतरुणदिवायरसमप्पहसरीरो / पंचप्पहरयणाहरणकिरणकव्वुरियदिसिचक्को // 36 // अक्खंडगंडमंडललुलंतकुंडलप्पहापहासिल्लो / रमणीयरमणअमरणरमणीगणमणहरो किं च // 37 // गहचक्कमिकहेलं पाडेउं भूयलं भमाडेउं / सयलकुलाचलचकं चूरेउं तह य लीलाए // 38 // संख्यावाळा यक्षोना समुदायथी सुरक्षित, नवनिधि अने चौद रत्नोना प्रभावथी प्रादुर्भाव पामता सकल अर्थोवाळु अने भुवनोमा छ खंड भरतक्षेत्रनुं अधिपतिपणुं जे प्राप्त थाय छे, ते खरेखर, श्रद्धा 20 सलिलना सिंचनथी परिवर्धित एवा पंच-नमस्काररूपी वृक्षना कोई एक फळना विलासनो ज विशेष छे // 26 थी 32 // .. वळी, छीपोलीना पडनी मध्यमा रहेल मुक्ताफळनी जेम श्वेत अने दिव्य वस्त्रथी ढंकायेली देवशय्यामां सुंदर अंग सहित जे उत्पन्न थाय छे अने उत्पन्न थया बाद आजन्म सौभाग्य अने युवावस्था युक्त, आजन्म रम्य शरीर, आजन्म रोग, जरा, रज अने स्वेद रहित शरीरयुक्त, 25 आजन्म स्नायु-नस, वसा-चरबी, मांस अने रुधिर वगेरे शरीरना मलथी विमुक्त तथा आजन्म म्लान न थाय एवी पुष्पमाला अने श्रेष्ठ देवदूष्यने धारण करनार तथा खूब तपावेला उत्तम जातिवाळा कांचन अने तरुण सूर्य समान छे शरीरनी शोभा जेनी, पांच प्रकारना रत्नमय आभरणोना किरणोथी काबरचीतरुं छे दिक्चक्र जेने, लटकता कुंडलोनी प्रभाथी प्रकाशमान छे. अखंडित गंड-मंडल जेने, रमणीय रमणशील देवरमणीओना समुदायना मनने हरण करणार, 30 1°खरखरु। 2 °सुंदरच्छंगो। 3 पुडतो मु। 4°म्मसुह। 5 °सरिच्छहJI