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________________ पंचनमुक्कारफलथुत्तं। [प्राकृत जंपि य विसिहपयवी विजाविनाणविणयनयनिउणं / अखलियपसरं' पसरंतकंतजसभरियभुवणयलं // 22 // अचंतणुरत्तकलत्तपुत्तपामुक्खसयलसुहिसयणं। . आणापडिच्छणुच्छाहिदच्छगिहिकम्मकारिजणं // 23 // अच्छिन्नलच्छिविच्छड्डसामिभोइत्तवियरणपहाणं / रायामच्चाइविसिट्ठलोयपयईबहुमयं च // 24 // जहचिंतियफलसंपत्तिसुंदरं दिनदुक्कहचमकं / पाविजइ मणुयत्तं तं च नमुक्कारफललेसो // 25 // जै चिय सव्वंगपहाणलडहचउसहिसहसविलयाणं / बचीससहस्समहप्पभावभासंतसामंतं // 26 // पवरपुरसरिसछन्नवइगामकोडीकडप्पदुप्पसरं / सुरनयरसरिसपुरवरविसत्तरीसहससंखालं // 27 // बहुसंखखेडकब्बडमडंबदोणमुहपमुहबहुवसिमं / दीसंतकंतसुंदरसंदणसंदोहदिन्नदिहिं // 28 // परचक्कचप्पणाणप्पदप्पपाइक्कचक्कसकिन्न / पगलंतगंडमंडलपयंडदोघट्टथट्टिल्लं // 29 // वळी, विशिष्ट पदवी, विद्या, विज्ञान, विनय अने न्यायथी निपुण, स्खलना वगर विस्तारवाळु, प्रसार पामता मनोहर यशथी भराई गयुं छे भुवनतल जेमां, अत्यन्त अनुरक्त एवा कलत्र अने पुत्र आदि सकल सुखी स्वजनवाळु, आज्ञानी राह जोतां उत्साही अने चतुर गृह-कर्म करनार 20 परिजनवाळ, अविच्छिन्न लक्ष्मीना विस्तारयुक्त एवं स्वामीपणुं, भोगीपणुं अने दानीपणुं; तेना वडे राजा, मंत्री आदि विशिष्ट लोक अने प्रजाजन वडे बहुमान करायेलं, यथाचिंतित फलप्राप्ति वडे सुंदर अने विरोधी लोकोना चित्तने पण चमत्कार पमाडे एवं मनुष्यपणुं जे प्राप्त थाय छे, ते पण नमस्कारना फलनो एक लेश छ / 22 थी 25 // वळी, सर्व अंगोए प्रधान शोभायुक्त चोसठ हजार अंतःपुरवाळु, बत्रीस हजार मोटा प्रभाव25 शाली सामंत राजाओना आधिपत्यवाळु, मोटा नगर सरखा छन्नु क्रोड गामना विस्तारवाळु, देवनगर समान बहोत्तेर हजार श्रेष्ठ नगरोवाळु, बहु-संख्यक खेड, कब्बड, मडंब, द्रोणमुख वगेरे घणी वस्तीओवाळु, देदीप्यमान, मनोहर अने सुंदर एवा रथोना समुदायथी युक्त राजमार्गोवाळु; दुश्मनना समुदायने चगदी नाखवाने समर्थ एवा पायदळनी सेनाना समुदायवाळु, अत्यन्त मदझरतां छे गंडस्थल जेना एवा प्रचंड हाथीओबाळु, मन अने पवनथी पण चंचल तथा कठोर खुरीओ30 वडे खोदी नाख्युं छे पृथ्वीतल जेमणे एवा तरल तुरंगो-घोडाओनी माळावाळु, सोळ हजारनी 1 °पइई J12 °र कंत पसरतज°51 3 °ई पयई वJ14 जंपिय / 5 °णप्पसत्तिपाइJ16 °घट्टपहिलं /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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