________________ विभाग] 16. नमस्कार स्वाध्याय / किञ्च धन्नाण मनोभवणे सद्धाबहुमाणवट्टिनेहिल्लो। मिच्छत्ततिमिरहरणो वियरइ नवकारवरदीवो // 15 // जाण मणवणनिगुंजे रमइ नमुक्कारकेसरिकिसोरो। ताणं अणिद्वदोघंथट्टघडणं न नियडेइ // 16 // ता निबिडनिगडघडणा गुत्ती ता वजपंजरनिरोहो। .. नो जावज वि जविओ पंचनमुक्कारवरमंतो // 17 // दप्पिट्ठदुनिगुरसुरुद्वदिट्ठी वि ताव होइ परो। नवकारमंतचितणऍव्वं न पलोइओ जाव // 18 // * मरणरणंगणगणसंगमे गमे गामनगरमाईणं / एयं सुमरंताणं ताणं सम्माणणं च भवे // 19 // . .. तहा जलमाणमणिप्पहफुल्लफारफणिवइफणागणाहितो। पसरंतकिरणभरभग्गभीमतिमिरम्मि पायाले // 20 // चिंताणंतरघडमाणमाणसाणंदिइंदियत्था जं। .. विलसंति दाणवा किर तं खु नमुक्कारफुरियलवो // 21 // ... वळी, मिथ्यात्वरूपी अंधकारने हरनारो एवो आ नमस्काररूपी श्रेष्ठ दीपक, जेमां श्रद्धारूप दिवेट अने बहुमानरूपी तेल छे ते, धन्य पुरुषोना मनरूपी भवनमां शोभे छे // 15 // .. जेमना मनरूपी वन-निकुंजमां नमस्काररूपी केसरी किशोर-सिंहनुं बचुं रमे छे, तेमने अनिष्ट रूप हाथीओनां टोळांनो संयोग थतो नथी // 16 // निबिड-मजबूत बेडीओनी घटना छे जेमां तेQ केदखानुं तथा वनपंजरनो निरोध त्यो सुधी. ज पीडा करे छे के, ज्यां सुधी पंच-नमस्काररूपी श्रेष्ठ मंत्र जपवामां आव्यो नथी // 17 // बीजानी दर्पिष्ठ-अभिमानी, दुष्ट, निष्ठुर अने अत्यंत रुष्ट एवी दृष्टि पण त्या सुधी ज होय छे के, ज्यां सुधी ते नमस्कार-मंत्रना चिंतनपूर्वक जोवायो नथी // 18 // ___ मरण, रणांगण अने मल्लोना समागम वखते के ग्राम-नगर आदिना गमन वखते, नमस्कार 25 - मंत्र- स्मरण करनाराओने रक्षण अर्थात् शरणनी अने सम्माननी प्राप्ति थाय छे // 19 // __ तथा जाज्वल्यमान मणिनी प्रभा वडे प्रफुल्ल एवी विशाल सर्पनी फणाना समूहथी प्रसार. पामतां किरणोना भारथी नाश पाम्यो छे भयंकर अंधकार ज्यांनो, एवा पाताललोकमां चिंतवतांनी साथे ज प्राप्त थाय छे चित्ताहादक इन्द्रियना विषयो जेमने एवा दानवोनो जे विलास ते तो नवकारना विलसितनो एक लेश मात्र छे // 20-21 // - - 30 . 1 ताण / 2 घट्टघदृषडणा / 3 परा J / 4 पुट्वि / / 5 °इआ जाव ... . . 20