________________ 364 पंचनमुक्कारफलथुत्तं / [प्राकृत कुसुमुग्गमो य सुग्गइआउयबंध(मस्स निविग्धं / उवलंभचिंधममलं विसुद्धसद्धम्मसिद्धीए // 8 // अन्नं च एयस्स जहाविहिविहियसव्वाराहणापयारस्स / कामियफलसंपायणपहाणमंतस्से च पभावा // 9 // सत्तू वि होइ मित्तो तालउडविसं पि जायए अमयं / भीमाडवी य वियरइ चित्तरयं वासभवणं व // 10 // चोरा वि रक्खगत्तं उविंति साणुग्गहा हवंति गहा / अवसउणा वि हु सुहसउणसाहणिजं जणंति फलं // 11 // . . जणणीओ इव न कुणंति डाइणीओ वि थेवमवि पीडं / पहवंति नै रुद्दा मंत-तंत-जंतप्पयारा वि // 12 // . पंकयपुंजु व्व सिही 'सीहो गोमाउय व्य वणहत्थी / मिगसावु व्व विहावइ पंचनमुक्कारसामत्था // 13 // . एत्तो च्चिय सुमरिजइ निसियणउट्ठाणखलणपडणेसु / सुरखेयरपभिईहिं एसो परमाएँ भत्तीए // 14 // पक्षी छे, दरिद्रताना कंदने मूळथी उखेडी नाखवा माटे वराह-सूकरनी दाढा छे, प्रथम उत्पन्न थता सम्यक्त्वरत्नने माटे रोहणाचलनी धरणी छे, सुगतिना आयुष्य-बंधरूपी वृक्षनो ए पुष्पोद्गम छे अने विशुद्ध एवा सद्धर्मनी सिद्धिने ओळखवानुं निर्मळ चिह्न छे // 6 थी८॥ वळी, शास्त्रोक्त विधि मुजब आचराया छे आराधनाना सर्व प्रकारो जेना एवा अने कामित 20 फलोतुं संपादन करवामां प्रधान मंत्रभूत एवा आ मंत्रना प्रभावथी शत्रु पण मित्र बनी जाय छे, तालपुट विष पण अमृत बनी जाय छे अने भयंकर जंगल मनने आनंद आपनार वासभवन जेवू बनी जाय छे / / 9-10 // ___ चोरो पण रक्षकपणाने पामे छे, ग्रहो अनुग्रह-कृपा करवावाळा थाय छे अने अपशकुन पण शुभ शकुनथी मेळववा योग्य ( सारां) फळो आपनारा बनी जाय छे // 11 // / 25. माताओनी माफक डाकिणीओ पण थोडी पण पीडाने करती नथी, तेमज भयंकर एवा मंत्र, संत्र अने यंत्रना प्रकारो पण काई करी शकता नथी // 12 // ... पंच-नमस्कारना सामर्थ्यथी अग्नि कमळना पुंज जेवो, सिंह शियाळ जेवो अने वनहस्ती मृगना बच्चा जेवो बनी जाय छे // 13 // ए कारणे सुर, खेचर वगेरे बेसतां, ऊठतां, स्खलना पामतां के पडतां परमभक्तिपूर्वक आ 30 नमस्कारनुं स्मरण कराय छे // 14 // 1 पभावो / 2 तालबुड / 3 'रई वाsJI 4 निरुद्धा। 5 सिंहो / 6 इत्तुच्चिय /